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एक्कवण्णासमो संधि
धरों के समान था। करवाल रूपी उज्ज्वल विद्युत उसके पास यो । टेढ़ी भौंहें इन्द्रधनुष की भांति थीं। तब शंकामुक्त होकर वह हनुमान से आकर भिड़ गया। हनुमानने तब दृढ़मनसे चन्दनका वृक्ष उखाड़ा । वह वृक्ष, सत्पुरुष की भाँति क्षमाशील शरीरबाला था, छेदन होने पर भी वह (सत्पुरुषकी भाँति) धीरज रखता था। उसका स्वभाव सत्पुरुषकी तरह शीतल था। सत्पुरुषकी भांति वह अपने जनपदमें आदरणीय हो रहा था। सत्पुरुषकी भौति ही वह सब लोगोंसे प्रशंसनीय था। उस प्रबर वृक्षके आघात से मेघनाद वक्षस्थल में आहत हो उठा। लाठी से आहत सर्प की तरह वह धरती पर लोबोट हो गया ।। १-१०॥
E] इस प्रकार जब हनुमानने चारों ही बड़े-बड़े उद्यानपालोंको मार गिराया तो शेष रक्षकोंने दौड़कर सब वृत्तान्त रावणको सुनाया। (वे बोले) "अरे अरे भूमिभूषण, भुवनपाल, आरुष्ट दुष्टोंके लिए काल, प्रबल भयंकर, देवयुद्धमें अत्यन्त रौद्र, नरश्रेष्ठ, जयसागर दानवों और इन्द्रका दमन करनेवाले, स्वर्गपथमें प्रथितप्रताप, कामिनी-स्तन-मण्डलोंके मर्दनमें विदग्ध, लकाके अलंकार, महान् गुणोंसे परिपूर्ण, हे देव, ! आप निश्चिन्त क्यों बैठे हैं ? अमर्षसे कुपित्त और प्रहारशील एक मनुष्यने कुमुनि के हृदयकी भाँति समूचा उद्यान उजाड़ डाला । उसने ताल तमाल
और ताइवृक्षोंको उखाड़कर चारों ही उद्यानपालोंको मार डाला है।" ठीक इसी समय रावणके निकट यह खबर भी पहुंची विा उसने आसाली विद्याको समाप्त कर दिया है। यह सुनकर रावण बहुत ही क्रुद्ध हुआ । मानो किसीने आग में घी डाल दिया हो । उसने कहा, "किसने यमराजका स्मरण किया है, किसने मेरा उद्यान उजाड़ डाला है ?"||१-१०।।