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एकमवण्णासमो संधि
साहारवृक्षके प्रबल आघातसे एकदंत चक्कर खाने लगा। दुर्वात से आहत पेड़की नाई वह धरतीपर गिर पड़ा ।।१-१०॥
[७] (इसके बाद) शक्र और सूर्य की तरह शक्ति सम्पन्न युद्ध में अशक्य कृतान्तवक्त्र आया। वह मद झरते हाथीकी तरह था । त्रिशिरकी तरह अपने हाथ में धनुष लिये हुए प्रचंड वह दक्षिण द्वारका रक्षक था। मुखसे कराल और गरजता हुआ बह आया और बोला—“हे हनुमान, वनको उजाड़कर तूं कहीं जा रहा है, सामने आ। उछलते हुए दंष्ट्रावलीको जिस तरह तुमने मारा है और एकदंतको मार गिराया है उसी प्रकार हे पवनकुमार, ओ रावणके दुष्पाप, मेरे ऊपर प्रहार कर।" तब दुर्धर हनुमानने सस्ते, उसे दो हो तारों जिस्कार दिया । वह उसी के आगे चक्कर खाता हुआ वैसे ही गिर पड़ा जैसे नमि और विनमि दोनों, आदिजिन ऋषभके सम्मुख गिर पड़े थे। इतने में युद्ध में रथरहित हनुमानने आरुष्ट होकर तमाल वृक्षको इस प्रकार उखाड़ लिया मानो सूर्यने अंधकारके जालको उच्छिन्न कर दिया हो । निशाचरोंका संहार करनेवाले हनुमानने अपने दोनों हाथोंसे पेड़ घुमाया और कृतांतवक्त्रको आहत कर दिया । तब अपने घूमने हुए और विकलांग शरीरसे वह कृतान्तवक उसी प्रकार लोट-पोट होने लगा जिस प्रकार वजूके प्रहारसे पर्वत चूर-चूर हो उठता है॥१-१०॥
[-] कृतान्तवक्त्रके आहत होनेर, दूसरा निशाचर मेघनाद, भयरहित होकर और हाथमेंधेष्ठ कृपाण लेकर, गरजता हुआ दौड़ा। वह पश्चिम दिशा का द्वारपाल था। उभरी हुई टेढ़ी भौंहोंसे वह अत्यन्त कराल था। उसकी आँखें रक्तकमल की तरह थीं। मुख से वह अट्टहास कर रहा था। वह नये जल