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तिपालीसमो संधि
उछलती हई (दो भागों में विभक्त हो गई।) आधी असली सुग्रीव के पास रही और आधी नकली सुग्रीव से जा मिली ।। १.६ ॥
[६] सात अक्षौहिणी सेना इधर थी और सात ही उधर । इस प्रकार वह आधी-आधी बट गई । अंग और अंगद दोनों वीर विघटित हो गये। अंग मायासुग्रीव को मिला और अभंग अंगद असली सुग्रीव को । दोनों शिविरों में वे दोनों भाई वैसे ही सोह रहे थे जैसे रात और दिन में चन्द्र और सूर्य सोहते हैं। बालि के पुत्र वीर चन्द्र-किरणका चेहरा भी (क्रोध से) तमतमा उठा । वह अभय देकर तारा देवी को रक्षा करने लगा। उसने कहा-"यदि तुम इसके पास आये तो मारे जाओगे। युद्धरत तुम में से जो जीतेगा उसे मैं तारादेवी सहित समस्त राज्य अपित कर दंगा।" परन्तु उन दोनों में से एक भी युद्ध में प्रवेश नहीं पा रहा था। इतने में सुग्री बने नल और नीलसे कहा कि यह तो वहीं कहानी सच होना चाहती है कि कोई (दूसरा ही) परस्त्री लम्पट गृह-स्वामी होना चाहता है । एक दुसरे को सहन न करते हुए वे लोग अपनीअपनी तलवार लेकर एक-दूसरे के निकट पहुँचे। वे आपस में लड़नेवाले ही थे कि द्वाररक्षकोंने उन्हें उसी प्रकार हटा दिया जिस तरह निरंकुश उन्मत्त गजोंको महावत हटा देते हैं ।। १-६॥
[७] इस प्रकार नगरके लोगों के हटा देनेपर वे दोनों नगर के उत्तर-दक्षिणमें स्थित होकर लड़ने लगे। जब लड़ते-लड़ते बहुत दिन व्यतीत हो गये तो हनुमान सहसा कुपित हो उठा ! 'मरमर' "(बनावटी) सुग्रीव का मानमर्दन हो" यह कहकर वह सुभट सेना के साथ सन्नद्ध हो गया। और "मारो मारो" कहता हुआ वह वहां जा पहुंचा। उसका शरीर वेग और हर्षसे उछल रहा था। उसने कहा-.-"मामा सुग्रीव, अपने मन में खिन्न न होओ। माया