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पउमचरित
घसा
मुग्गीव-जुअलु कोडावणउ पेक्स वि रहस-समुच्छलिउ । चालु अद्धउ सुगावहाँ त मायासुग्गीयहाँ मिलिउ ॥६॥
[६] एत्त वि स अक्खोदणीक । एसह वि सस अक्खोहीड || 30 थि3 साहणु भोवद्धि होधि । अगमप विडिय सुख घे वि ॥२॥ माथासुग्गीयहाँ मिलिउ अछु । भान्ट सुग्गीवहीं रण अभाः ।।३।। विहि सिमिरहि वे वि सहन्ति भाइ । णिसि-दिवसेंहि चन्दाइम गाई || एप्तहें वि जी निफुरिय-नगाणु । सुट वालि जामें सकिरण ॥५।। घिउ तारहें रक्खणु अभउ देवि । “जाइ हुकहो तो महु मरहीं वे वि ।।६।। जुज्झन्तु जिणेसइ जो जि अनु । तहाँ सयालु स- तारउ देमि रज्जु" ।७। विहि एक्कु नि उ पइसारु लहइ । पल-णालहुँ पुणु सुग्गीउ कहह ।। "सरचत आहाणउ' गहु आउ । परयारिउ जि घर-सामि जाउ" |||| असहस्त परोप्परु झुक्क वे वि 1 णिय-णिय-करवालई करें हिं लेवि ॥१०॥
घता किर जाम भिन्ति भिडन्ति ण वि तात्र णिवारिय वारणे हि । मुफस मत्त गहन्द जिह श्रोसारिय करणार हि ॥१५॥
भोसारिय जं पुरषर-जगेण । थिय णयरहों उत्तर-दाहिणेण ॥३॥ अण्णेक-दिया जुज्झन्ति जाम । पवणाय-णन्दणु कुविउ ताम ।।२।। "मरु मरु सुग्गीवहाँ मलिउ माणु" । सण्णद्ध सुहा-साइण-समाणु ॥३।। "हणु हणु भणन्तु हणुवन्तु पत्तु । पभणइ पिरु रहसुध्छलिय-मत्त ||१|| "सुग्गीच माम मा मणे मुसु । विंड-भवहीं पीवउ देहि जुम् ।।५11