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एकवणासमी संधि
वह स्वयं अस्खलितमान था । विशालबाहु वह आकर, हनुमानसे इस प्रकार भिड़ गया मानो गंगाके प्रवाहसे यमुनाका प्रवाह टकरा गया हो । परंतु उसने हनुमान पर जो गदा फेंकी, वह टूटकर सौ-सौ टुकड़े हो गयी । ( यह देखकर ) हनुमान पुलकपूर्वक हँस पड़ा और यह कहकर कि वनभंगके बाद अब सुभट-विनाश दिखाऊँगा, उसने तुरन्त तालवृक्षको उखाड़ लिया । बहु वृक्ष कुजनकी तरह 'सुर-भाजन ( मदिरा और देवत्वका पात्र ) भाव, दूरफल ( दुष्टसे कोई फल नहीं मिलता और तालवृक्षका भी फल नहीं होता ) और बड़े कष्टसे झुकाने योग्य था। ऐसे उस तादृवृक्षसे हनुमानने उस राक्षसको भी युद्ध में आहत कर दिया। धरतीपर गिरकर वह वैसे ही बिखर गया जैसे दुष्कालसे ग्रस्त देश नष्ट-भ्रष्ट हो उठता है ॥ १-१०॥
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[ ६ ] जब हनुमानने मत्सरसे भरे दंष्ट्रावलिको इस प्रकार युद्धमें नष्ट कर दिया, तो एकदंत गरजकर उठा और उसपर ऐसे दौड़ा मानो गजवर के ऊपर गजवर ही दौड़ा हो। वह पूर्वद्वारका रक्षक था । ( वह ऐसा आया ) मानो क्षयकाल ही आया हो । उसकी देह दृढ़ और कठिन थी। वह शत्रुसेनाका प्राचीर तोड़ने में समर्थ था। उसने अपनी शक्तिको निमितकर उसे हनुमानपर ऐसे छोड़ा मानी पर्वतने समुद्र में नदी प्रक्षिप्त की हो। तब बुद्धमुख और दुर्दर्शनीय हनुमानने उत्तम साहार वृक्ष उखाड़ लिया । वह वृक्ष कामिनीके मुखकुहर के समान था, खूब पके हुए फल ही उसके अधर थे, कुसुम दाँत थे, नवपल्लव ही लपलपाती जिल्ला थी, कोकिल कलरव ही उसकी मधुर तान थी | महाकविके काव्यकी तरह वह वृक्ष दलविशेष ( शब्दरचना और पत्तियों) से युक्त तथा प्रच्छन्न रसविशेषसे पूर्ण था। हनुमानके करसे मुक्त उस
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