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इक्यावनी सन्धि लक्ष्मी-निकेतन, अस्खलितमान हनुमान, सीतादेवीसे वह चूड़ामणि लेकर उस उद्यानसे वैसे ही चले जैसे कमल-दनसे ऐरावत हाथी जाता है।
[१] अपना बाहुदंड ठोकता हुबा, शत्रु को विजयलक्ष्मी का मर्दन करनेवाला वह सोचता है कि, मैं आज तब तक नहीं जाऊँगा कि अब तक रावण को क्रूस नहीं करता । रसमसाता कसमसाता, विरस शब्द उत्पन्न करता हुआ, नागकुल विपुल शिरोमणियों को मोड़ता हुआं, पड़ों के उखने से हुए खड्डों में स्खलित होता हुआ. समस्त दिशांतरों को दलता हुआ, अशोक लता और लवलीलता से क्रीड़ा करता हुआ, ऊँचे आकारवाले, भौरों से गुंजायमान, वृक्षों से लगे हुए भग्न द्रुमों को नष्ट करता हुआ. इलायची कक्केल लताओं को कड़कड़ाता हुआ, वटवृक्षों और ताइवृक्षोंको तड़-तड़ तोड़ता हुआ, करमर करीर वृक्षों को कड़कड़ाता हुआ, अश्वत्थ और अगस्त वृक्षों को थरथराता हुआ, बलपूर्वक सौ-सौ टुकड़े करता हुआ, सप्तपर्णी पुष्पों का सौरभ लुटाता हुआ, कठोर महीरूपी पीठवाले वन को भग्न करूंगा। समस्त पेड़ों को उखाड़ता हुआ मैं एक मुहूर्त के लिए परिभ्रमण करता हूँ। विलासिनी के यौवन की तरह आज मैं इस वन का दलन करूंगा।"
[२] अपने मन में बार-बार यह विचार करके सुन्दर हनुमाम उस उपवन में घुस गया। मानो ऐरावत महागज ही मान-सरोवर में घुसा हो । उपवनालयमें निध्यात, अशोक, नारंग, नाग, नाग, लवंग, प्रियंगु, विडंग, समुत्तुंग सप्तच्छद, करमर, करवन्द, रक्तचन्दन, दाडिम, देवदारु, हल्दी, भूर्ज, दाख, रुद्राक्ष, पद्माक्ष, अतिमुक्त, तरल-तमाल, तालेल, कक्कोल, शाल, विशालांजन, वंजुल, निंब, सिंदीक, सिंदूर, मन्वार, कुन्देद, ससर्ज, अर्जुन, सुरतरु, कदली