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पतमच रिट
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इरे तुहु मि जाहि परमेसरिहं तं मन्दिर लङ्कासुन्दरिहें । लहु भोषण आहार जंस-रस-मेह जिह सुरउ ॥१॥
उत्पति ॥ २५ विक्खाय ॥२॥
तं णिसुबि वे वि संचलित मं सुरसरि जण रखु भन्छु लहु लेविशु आयड | णं सरसइ - लडि वड्डड भोयणु भोयण- सेआएँ । अच्छऍ पर सकर-खण्ड
खण्डऍ पे ॥४॥ पायस पयसेंहिं । लड्डुव-लावण-गुरु- इन्सुरसँ हिं ॥५॥ मण्डा सोयवति घियकरें हिं । मुमा सूत्र णाणानिह करें हिं ॥ ६ ॥ सालण हं बहु विधि-विचित्तर्हि माहणि-मायन्देहिं विधिहिँ ॥७॥ अलय पिप्पलि मिरियालऍहि । लावण-माल र हिँ कोमल हि ॥८॥ चिभिटिया कचोर बासुतर्हि पेडल पप्पडेहिं सु-पहुहिं ॥३॥ केल्य नालिकेर जम्बीरे हिं । करमर करवन्देहिं करीरे हिं ॥१०॥ तिम्मणेहिं जाणाविह चप हिं । साविच मजिय स्वहाव हिं ॥। ११ ॥ अष्णु मि खण्ड सोल-गुदसोल्लेहिं । वढाइहिँ कारसहिं ॥१२॥ विक्षणेहिं स-महिय दहि-खीरें हिं। सिंहरिणि धूमवन्ति सोवीरें हिं ॥ १३॥
पत्ता
अच्छउ एड (?) मुहरसिउ अवियन्हद उल्हाचजउ किह । यहिं में लम्ब सहिँ जे तर्हि गुलियार जिनवर वषणु सिंह ॥११४॥ २ [ २ ]
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तं ते भुवि भोयण पुणु करेंवि वयण-पश्खालणड | समलहैं कि अनु वर-चन्द्रणेण विष्णन्त देवि मरु णन्वर्णे ||१|| 'बद्ध महु सणएँ व परमेसरि । नेमि सेत्धु जहिँ राइव केसरि ||२|| मिलों वे विपरन्तु मणोरह । फिट जणवएँ रामायण- कार * ॥२॥ सं जिसुमेचि देवि गओशिन साहुकार कति पयोय ॥४॥ा 'सुन्दर भिय-धरु गम-गुण-बहुएँ (1) एहन जित्ति हो कुछ बहुम ||५||
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