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पपणासमो संधि
गया है।" यह सब सुनकर एक और दूसरी सखी अपनी आँखोंमें आँसू भरकर गद्गद स्वरमें बोली, "अवश्य ही यह सपना असुन्दर होगा। इसमें प्रतिपक्षका पक्ष ही सुन्दर होगा। मुनिवर का कहा सच होना चाहता है । उद्यानके विनाशकी तरह लंकाका विनाश होगा। यह सपना सीतादेवीके लिए सफल है क्योंकि इसमें सम का यश और लक्ष्मणकी विजय निश्चित है। अब रावणका, अपने परिवार और सेनासहित क्षयकाल ही आ. पहुंचा है ।।१-१०॥
[१०] ठीक इसी अवसरपर पीनपयोधरोंवाली लंकासुन्दरीने हनुमानका पता लगानेके लिए इरा और अचिराको भेजा ! समस्त राजाओंमें श्रेष्ठ हनुमान जिस उद्यान में घुसा हुआ था वे दोनों भी इस प्रकार वहाँ पहुँची मानो शिवस्थानमें सुगति और तपश्री पहुँच गई हों, या मानो जिनागममें क्षमा दया देखी गई हों। हनुमानने उन दोनोंके साथ प्रिय आलापकर उन्हें कण्ठा और कांचीदाम दिया । और फिर उसने रामकी पत्नी सीतादेवी से पूछा, "हे परमेश्वरी! आपका भोजन किस प्रकार होगा।" यह सुनकर सीतादेवीने हनुमानको बताया कि मुझे भोजन किये हुए इक्कीस दिन व्यतीत हो गये। मेरी भोजनसे तब तकके लिए निवृत्ति है कि अब तक मुझे अपने पतिके समाचार नहीं मिलते। किन्तु केवल आज मेरा मनोरथ पूरा हुआ। और यही मेरा भोजन हैं कि मैंने रामकथा सुन ली।
पत्ता—यह सुनकर हनुमान ने अचिरा का मुख देखा और (कहा), “जाकर विभीषण से सीता के भोजन के लिए कहो।"