________________
१४८
परमपरित
तं मिसुर्णेवि भज्योक पोलिय । गग्गर - वयणी अंसु- जलोक्किम ॥७॥ 'अवसें सिविणउ होइ असुन्दरु । बहिं पठिवक्याहों पक्खिड सुम्हरू ॥८॥ मुणिवर-भासिर हुक्कु पमाणहाँ । जिह लङ्कहे विणासु उज्जाणहाँ ।।६।।
घत्ता पहु सिविणउ सीयाँ सहलु जसु रामहों वि अउ जणणहाँ । सहुँ परिवारै सहुँ चलेग खप - कालु पहुक्कु दसाणणहों' ॥३०॥
[.] सहि अवसर पाण - पओहरिए अरुणुम्गमें लङ्कासुन्दरिएँ ।
हर - अहरउ विणि मि पेसियउ हणुवम्तहाँ पातु गवेसियङ ॥१॥ जा उज्जाण परिटिउ पाणि | सयलु- गरिन्द- विम्द-चूडामणि ॥२॥ तहि संपत्सउ विणि वि जुवहर 1 सिव-सासा ससिरि सुगइड ॥३॥ पं खम दयउ जिणागमें दिदउ । जयकारेप्पिणु पास णिविटउ ॥४॥ सेगा वि साहिं समउ पिड अम्पधि । कण्टर काली-दामु समप्पवि ॥५॥ पुशु विष्णत हलीस मणोहरि ! भोभणु तुम्ह केम परमेसरि ॥६॥ अवसह सीय . समारण-पुत्तहाँ । 'वासर एकवीस मइँ भुत्तहाँ ॥७॥ जाम ण पत्त घन भसारहों । साम णिविक्ति मामु आहारहों ॥६॥ अज णवर परिपुष्ण मणोरह । तं जें भोज्जु जे सुभ रामही कई' ॥१॥
पत्ता तं णिसुणे वि पवणहाँ सुपण अवलोइड मुहु भइरहे सण । 'गम्पिणु भक्णु विहीलणहाँ बुबह सीयहें करि पारणउ ॥१०॥