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एग्णालमो संधि
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[] रातका चौथा प्रहर ताड़ित होनेपर (ऐसा लगा) मानो जगके किवाड़ खुल गये हों। तब, इसी प्रभातलामें त्रिजटाने रातमें देखा हुआ अपना सपना बताया । उसने कहा कि हला हला, सखि लवली, लता, लवंगी, सुमना, सुबुद्धि, तारा, तरंगी हला, कक्कोली, कुवलयलोचना, गन्धारी, गौरी, गोरोचना, विद्युत्प्रभा, ज्वालामालिनी, इला अश्वमुखी, राजमुखी, कंकालिनी, । आज मैंने एक सपना देखा है कि एक योधा अपने उद्यान में घुस
आया है और उसने ( उसके ) एक-एक पेड़को नष्ट कर दिया है। वनकी भाँति उसने वन-विनाशका प्रदर्शन किया है । तब इन्द्रजीतने उसे उसी प्रकार पकड़कर वाँध लिया जिस प्रकार गुरुतर कषायें पापपिण्ड जीवको बाँध लेती हैं । उसे घेरकर नगरमें प्रविष्ट किया। परन्तु वह दशाननके मस्तकपर पैर रखकर चला गया । थोड़ी ही देरके बाद हर्षितशरीर उसने कुकलन की तरह घरका नाश कर डाला। इतनेमें एक और नरश्रेष्ठने सुरवधुओंकी शोभाका अपहरण करनेवाली लकानगरीको तोरणसहित उखाड़कर समुद्र में फेंक दिया ।।१-१०॥ - [६] ब्रिजटाके वचन सुनकर एक, ( सखी) के मनमें बधाई की बात उठी और उसने कहा, "हला सखी ! तुमने बहुत बढ़िया सपना देखा है, मैं जाकर रावणको बताऊँगी। यह जो तुमने सुन्दर उद्यान देखा है वह सीताका यौवन है और जिसने उसका दलन किया है वह रावण है, जो बौधा गया वह भयानक शत्रु है, और जो रावणके ऊपर दौड़ा वह ऐसा निर्मल यश है कि जो कहीं भी नहीं समा सका । और जो पृथ्वीका जयघर ध्वस्त हुआ वह रावणने ही शत्रु सेनाका संहार किया । और जो लङ्कानगरीको समुद्र में प्रक्षिप्त किया गया, वह सीताको हो श्रीगृहमें प्रवेश कराया .