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पढमचरिङ
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निसि-पहरें चउरथ तानियऍ णं जग कवाडे उघाडियएँ । तहिँ तेहऍ काल पगासियड तियडऍ सिविणड विष्णासियत ॥ १ ॥ 'इ ह लबलिए लहऍ बजिए। सुमनें सुबुद्धिए तार तर ि॥२॥ इलें कहो लिए कुवलय- लोयणें । इसे गन्धारि गोरि गोरोय ॥३॥ हलै विजय जाम मयाणि ॥४॥ सिविण्ड अज्जु मा तह तह सम्वु तेज सो विणिव
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भई विउ एकु जोहु उज्जाण पडूवर || ५१ आकरिसिउ । वजें जिह वण भङ्गु पदरिसिङ ॥ ६ ॥ इन्दह-राए । पाव-पिण्डु णं गरुन कसा ॥७॥ वेडेपणु | गउ दस सिर सिरे पाउ वेपिशु ॥ हरि सिय-ग किड घर-भ नाइँ दु-कलसें ॥१॥
पट्टण पसा पुशु थोवन्स
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धता
तावन्ने गरवरेण सुरबहुअ- सुहालय खोरणिय । उप्पादेपिशु बहि-जलै आवट्टिय लङ्क स-तोरणिय ||१०||
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जणु सुर्णेदिति
त
सहिँ एक मर्णे व वण ।
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'ह चक्रउ सिविणउ दिट्ठ पई रावणहाँ कहेव गम्पि मई ॥१॥ घुड जं दिह मणोहरु उववणु तं वइदेहि केरड योग्य ॥२॥ जिवरम लिड जेण सो रावणु । जो णिवद्ध सो सस भयावणु ॥ ३ ॥
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जो दहगीवहाँ उयरि पधाइड 1 सो णिस्मलु जसुकद्दिमि ण माइ ॥४॥
जं पुहई जयधरु विसि तं पर-बलु दहमुहण दिणासि ॥५॥ जं परिचित लङ्क रचणायरें । सा मिद्दिलिय पसारिम सिरिहरें १६॥
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