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पउमचरिट
गाई पोसइ 'अहाँ अहाँ लोयहाँ । धम्मु करहों धण-रिद्धि म जोयहाँ ॥७॥ सधु चवहीं पर-वधु म हिंसहाँ । में चुकहाँ तहाँ वइवस-महिसहाँ ।।८॥ पर-तिय मनु महु महु वजहौं । जे चुकहाँ संसार-पवनहीं ॥६॥
घत्ता
मं जाणेजहों पहरु गड़ जमरायहाँ कैरड आण करु । तिवं हि णाडि कुवारहि विवंदिव छिन्देवउ भाउ-तरु' ||१०
[ ] णं पुणु वि पोसइ घझिम-सरु 'हउँ तुम्हहुँ गुरु उचएस करु ।
जग्गहों जगहों के सिर सुअहो माछरु अहिमाणु माणु मुभहीं ॥१॥ किगण णिग्रच्छहों आउ गलन्ताउ । णादि-पमाहिं परिमिवन्तः ॥२॥ अद्वारह-सय-सङ्ग-पगा हि । सिद्धहि सहसिएहिं उसासें हिं ॥३॥ पाडि-पमाणु पगासिद एहउ । तिहि णाडिदि मुहुन त केहउ ॥४॥ सत्त-सयाहिएहि ति-सहासें वि । अण्णु वि तेहत्तरि-उसासें हिं ॥५॥ गुख मुहुस-पमाणु णिवउ । दुःमुहुरोहिं पहरड पसिबउ ॥६॥ पहरद्ध वि सचद्ध-सहासहि । अण्णु वि छाया हिं उसासहि १७॥ विहिं अहिं दिख ही अद्धड । चाणवई उसासे हिं वनउ ॥८॥ अण्णु वि पपणारहहिं सहासहि । पहरू पगासिउ सोक्ष-णिवासे हि ॥९॥
घत्ता
जाहि गाडिहें कुम्भु गउ चरसहिहि कुम्भई रति-दिणु' । एसिड छिज्जइ आउ-बलु त क युवइ परम-जिणु' nou