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पण्णासमो संधि
१४३ युधको मार गिराया है। लंकासुन्दरी भी मेरे वशमें है, उसी प्रकार जिस प्रकार हथिनी हाथीके वशमें हो जाती है। आसाली (आसालिका) विद्याको भी मैंने नष्ट कर दिया है। और इस समय मैं रावणका सामना करने में समर्थ हूँ। इतने पर भी आपको विश्वास न हो रहा हो तो मैं राघवके दूसरे-दूसरे संकेतोंको बताता हूँ आप सुनिएँ। जब राम वननासके लिए निकले तो वे दशपुर और नलकबरके नगरमें प्रविष्ट हुए। नर्मदा विध्याचल (होते हुए) और ताप्ती नदीमें स्नान करके उन्होंने सबेरे रामपुरी नगरीके लिए प्रस्थान किया। जयपुर और नद्यावर्त नगरको उन्होंने नष्ट किया। क्षेमजलि और वंशस्थल स्थानोंका अबलोकन किया। फिर गुप्त-सुगुप्त और जटायुका संनिवेश, सूर्यहास खंग, मद्रा कुमार और वाखमा सोश, खंदुरम संयमकी प्रवंचना, त्रिशिराका रण-चरित्र, तथा दूसरे दसरे दैत्योंके भी। ये तो उनकी पहचान की स्वाभाविक बात हैं । निशाचरोंने और भी दूसरे-दुसरे छल किये हैं। क्या आपको अवलोकिनी विद्या, और सिंहनादके फलोंका पता नहीं है ? ॥१-१०।।
[६] सुनिए, जिस प्रकार जटायुका संहार हुआ और विद्याधर रत्नकेशी पराजित हुआ। सहस्रगति तीरोंसे छिन्न-भिन्न हो गया। सुग्रीव राजगद्दीपर बैठाया गया।" यह सुनकर सीतादेवी को संतोष और विश्वास हो गया। उन्होंने कहा, "साधु-साधु, निश्चय ही तुम सुभट-शरीर वीर रामके अनुचर हो ।” बार-बार इस प्रकार हनुमानकी प्रशंसा करके सीतादेवीने वह अंगूठी अपनी उँगली में पहन ली। करकमलमें लिपटी हुई वह ऐसी जान पड़ रही थी मानो मधुकर ही परागमें प्रविष्ट हो गया हो। इतने में चौथे पहरका इस प्रकार अन्त हो गया कि मानो लंकामें यमका