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पउमचरिड
। [२] अण्णु वि मयरहराबत्त-धरु सिर-सिहर-चढाविय-उभय-करु । णिय जणि वि पुच ण अणुसरइ सोमिति जेम पई संभरइ ॥१॥
( पद्धडिया-दुवई) सुमरह णिय गन्दणु माया इस सुमरइ सिहि पाउस छाया इव ॥२।।
सुमरइ जणु पहु-मजाया इव ॥३॥ सुझाव भिन्नु शुसाभिदा । सुमरह करहु करार-लया इव ॥४॥ सुमरह मन-हस्थि घणराह व । सुमरइ मुणिवरु गइ-पेवरा इव ॥५॥ मुमरह णिन्द्णु थण-सम्पत्ति च । सुमरइ सुरवर अम्मुप्पत्ति व ॥६॥ सुमरह भविउ जिणेसर-मति छ । सुमरइ वड्याकरणु विहन्ति व १७॥ सुमरइ ससि संपुण्ण पहा इव । सुमरइ बुहयणु सुका-कहा इव II सिह पइँ सुमरइ देवि जणझणु । रामहों पासिउ सो वृमिय-मण ६॥
घसा एक्कु तुहारउ परम-दुहु अगेक्कु वि रह-तणयहाँ तणउ । एक्कु रत्ति अण्णेषकु दिणु सोमित्तिहँ सोक्नु कहि तणड' ॥३०॥
तो गुण-सलिल-महाणइहें रोमञ्च पवहिर जाणा । काउ फु वि संय-खण्ड गउ पं खलु भलहन्तु विसिह-मड |
(पद्धडिया-दुवई) पदम् सरीरु ताह रोमचिउ । पच्छएँ णवर विसाएँ सचिउ ॥२॥ 'दुक्कर राम-दूउ एहु आइउ । मम्छुड अण्णु को वि संपाइस ॥३॥ अस्थि अपोय पुरथु . विजाहर । जे णाणाविह · रूव-अधार ॥३॥ सवाँ मई सब्भाव णिरिक्खिय । चम्दणहि वि चिरुणाहि परिक्खिय ।। गं घण-देवय माणहाँ चुक्की । "मई परिणहाँ"पभणन्ति पटुकी ६॥