________________
पणास संधि
१३७
इधर हनुमानने भी, हर्षसे उछलते हुए दुर्दम दानवोंका दमन करने वाली भुजाओं से सीतादेवीको उसी प्रकार प्रणाम किया जिस प्रकार देवेन्द्र जिन प्रतिमाको नमन करता है ॥ ६ ॥
पचासवीं संधि
मन्दोदरीके चले जानेपर हनुमान सीतादेवीके सम्मुख ऐसे बैठ गया मानो अभिषेक करनेवाला महागज ही देवलक्ष्मीके सम्मुख बैठ गया हो ।
[१] तदनन्तर विकसित मुखकमलवाली एवं कुवलयदलके समान नेत्र और बेलफलकी तरह पीन स्तनवाली दृढमना सीतादेवीने हनुमानसे पूछा, "हे वत्स, कहो कहो, अनेक नामवाले रामकी कुशलवार्ता है या अकुशल । हे वत्स ! बताओ बताओ, कमलनयन लक्ष्मण जीवित हैं या मारे गये।" यह सुनकर हनुमानते सिरसे प्रणाम करते हुए रामकी कुशल वार्ता कहना आरम्भ किया । "हे माँ, अपने मनमें धीरज रखिए । लक्ष्मणसहित राम जीवित हैं परन्तु वे रेखाकी तरह ही अवशिष्ट हैं । तपस्वीकी भाँति उनके अंग-अंग सूख गये हैं। कृष्णपक्षके चन्द्रकी तरह वह अत्यन्त क्षीण हो चुके हैं। निवृत्ति ( मागियों) के समान राज्योपभोगसे रहित हैं। वृक्षकी तरह पत्तों (प्राप्ति और पत्र ) को ऋद्धिसे परित्यक्त हैं । दुष्कर-कथाका विचार करते हुए कविकी तरह अत्यन्त चिन्ताशील हैं। सूर्यकी तरह अपनी ही किरणों से वर्जित है । आगकी भाँति तोय और तुषारसे ( आँसू और प्रस्वेदसे) वर्जित हैं । तुम्हारे वियोग में राम क्षयकालके इन्दुकी तरह ह्रासोन्मुख हो रहे हैं, या दसमीके इन्दुकी भाँति अत्यन्त दुर्बल और अशक्त शरीर है ।११-१० ॥