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पउमचरित
पत्ता हणुन । रहमुशासिमग नः णे जिणबर-एटिम सुरिन्देश पमिय सीम स यं भुहि ॥३॥
_ [ ५० पण्णासमो संधि] गय मन्दोपरि भिय-परहों हणुवन्तु वि सीयहे सम्मुहड । भग्गएँ थिउ अहिसेय-करु णं सुरवर-लनिक मतभाउ ॥
[ 1 मालूर-पवर-पीयर-थणाएं कुवलय-दल-दाहर-लोयणाएं । पप्फुल्लिय-वर-कमलाणणाएँ हणुवन्तु पपुखिउ दिर-मणाएँ ॥१॥
(पद्धलिया-दुबई ) 'कह कहूँ वच्छ बरखा बहु-गामहो । कुसल-वत्त किं भकुसल रामहाँ ।।२।। कह कई वच्छ वच्छ कमसेक्षणु । किं विणिहउ किं जीवह लक्षणु' ॥३|| तं गिसुणेवि सिरसा पणमन्ते । अविखम कुसल-बत्त इणुवन्ते ॥४॥ 'भार मार कर धीरउ णिप-मणु । जीवह रामचन्दु स-अजहणु ॥५॥ भावरि परिहिट लोह-मिसेसर ! तवसि व सम्व-सा-परिलेसर ।।६।। चन्दु व बहुल-पक्स-खाय-खीण। णियह ३ रज्ज-विहोष-बिहीण ॥७॥ रुक्षु व पत्त-रिवि-परिचतउ । सुकर व दुकर कह चिन्तनत ॥८॥ तरणि वणिय-किरणेहि परिव बिउ । जसणु व तोय-तुसार-पररिजउ ॥६॥
घत्ता इन्दु व चवण-काल सहसिर दसमि बागमण जेम अहहि । खाम सामु परिमीण-तणु तिह तुम विभओए वासरहि ।।१०॥