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पसमचरिड सई विरुखएहि को मुहह । आई णिणापं अम्बर पुन । कन्हहाँ किरण परकम बुद्धिमउ । खर-चूसहि समउ जें अमिउ ॥५॥ पालिय कोरिसिस वि अविभोलें । लच्छि व गऍण गिल्ल-गिएलोलें ॥६॥ साहसगइ वि वियारिड रामें । को जगें अपणु सेए आयामें ॥७n भावह रावणो वि बस-लखाउ । णवर पाह-सीलेण न लबूड पदा चोरहों परयारियहाँ अज्जोगवि(१) । तासु सहाउ होइ कि कोह वि ॥६॥
घसा
अनु वि जव-कोमल-बाहि जसु विजह आलिङ्गणउ । मन्दीवार तहाँस्य-कन्तहा किह किमाई दूअत्तणउ'१०॥
[२०] जं पोमाइड दासरहि णिन्दिउ रावण-चल-उघहि ।
तं मन्दोअरि कुइय मनं विज्नु पगजिय जिह गयणें ॥ ३५५ 'अरे अरे इणुव हणुब वल-गावहुँ । दिद्ध होजाहि एयहुँ आलावहुँ ।।२।। जइ ण विहाणए पई बन्धामि । तो णिय-गोस कलाउ लावमि ॥३॥ अण्णु मि घरिणि न होमि णिसिन्दहों । उ पणिवाद करेमि जिणिन्दही ॥४॥ एम भगेवि मुरिट संचल्लिय । बेल समुहहाँ जिह उत्थरिलय ||५|| परिचारिय लकाहिब-पत्तिहि । पढम विहन्ति व सेस-विहतिहि ॥६॥ जेडर - हार - दोर - पालम्वहि । सुरधागु - तारायण-पढिवि हि ॥७॥ पसलन्यि णिवन्ति किसोयरि । गय णिय-णिलर पत मन्दोयरि ॥८॥