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पडमचरित
धत्ता
मन्दोपरिसीयामविहि कलह पद्धि भुवण-सिरि । पं उत्तर-दाहिण-भूमिहि मज्म परिडिड विधमहरि ॥८॥
[१८] 'ओसरू भोसरु दिव-माह पासहों सीय - महासइह ।
हउँ श्राथामिय-पर- धलं हि र विसजिड़ हरि-बहिं ॥१॥ हउँ सो राम • दृट संपाइन । अङ्गस्थलङ लएक्षिण भाइउ ॥२॥ पहरहाँ मई समाणु अहसकहाँ । सीया - एविह पासु म हुबहौं ॥३॥ तं णिसुणेत्रि वषणु णिसिंगोभरि । चषिय विख्ख कुछ मन्दोअरि ॥॥ 'चाउ पुरिस-विसेसु गवेसिउ । साशु लएवि साहु परिसेसिड ||५|| खरु संगहें वि तुमु वजिट । जिणु परिहर वि कु देवड अधिड ॥६॥ छालड धरवि गहन्दु विमुक्छ । अन्तरेण मिस सुहे चुकाउ ॥७॥ एक वि उचयार ण सम्भरियर । रावणु मुवि रामु जं वरियड MER जसु णामेण जि हासड विजह । तासु केम दूअत्तणु किज्जइ ॥६॥
घत्ता
जो सथल-कालु पुज्जेष्वउ कडय-मउ - कडिसुत्तएँ हिँ । सो एयहि तुहुँ बन्धेश्वर धोरु व मिलवि बहुत्तएँ हि ॥१०॥
ने णिसुवि हणुबन्नु किह झसि पलिस दवग्गि जिह ।
'पद् रामही णिन्द कय किह सय-खण्ड ण जोह गय ॥३॥ जो धगधगधगन्तु वइसाणरु । रखस - वण - तिण-रुक्ख-भयङ्करु ॥२॥ अण्णु वि जसु सहाउ भड़-भक्षणु । झलझाडन्ति (?) सौमित्ति-पहल ।।३।।