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एक्कूणपण्णासमो संधि
[१६] यह सुनकर ऐरावतके कुंभस्थलकी तरह पीन स्तनोंवाली मंदोदरीका मन विरुद्ध हो उठा। राम और लक्ष्मण की प्रशंसासे उसकी क्रोधाग्नि भड़क उठी । वह बोली, “मर-मर, कहाँ राम और कहाँ लक्ष्मण, तू आज ही रावणको क्रुद्ध पायेगी। अपने इष्टदेव का स्मरण कर ले। तेरा मांस काटकर भूतों को दे दिया जायगा। तुम्हारे नामतककी रेखा पोंछ दी जायगी, जिससे तू न तो रावणकी होगी और न रामकी।" यह कहकर मन्दोदरी शत्रुविरोधी शुलं लेकर दौड़ी। ज्वालमालिनी विषकी ज्वाला और कंकाली कराल करवाल लेकर दौड़ी। विजलीकी तरह उज्ज्वल रंगकी विद्युत्प्रभा, रक्तकमलकी तरह नेत्रवाली दशनावली और अश्य छ; हिनाहिगा कर उठी : गमयुद्धी गरजती हुई आई। उन भीषण स्त्रियोंकी उस भयंकर सेनाको देखकर काल और कृतान्तने भी अपने प्राण छोड़ दिये। परन्तु उस घोर संकटकाल में, राम और लक्ष्मणके बिना भी, दृढ़ शीलके बलसे सीताका हृदय जरा भी नहीं कांपा ॥१.१०॥
[१७] तब उस भयंकर उपसर्ग और सीता देवीकी दृढ़ताको देखकर हनुमानकी भुजाएं पुलकित हो उठीं। वह उनकी प्रशंसा करने लगा कि "संकट में जीवनका अन्त आ. पहुँचनेपर भी इस धीराने धीरज रक्खा । स्त्री होकर भी सीतादेवीं में जितना साहस है, उतना पुरुषों में भी नहीं होता। इस अत्यन्त विधुर समयमें भी जब कि स्वामी रामकी पत्नी मर रही है, यदि मैं अपने आपको प्रकट नहीं करूँ तो मेरा अहंकार और अभिमान नष्ट हो जायगा", यह सोचकर हनुमानने अपने हाथमें गदा ले लिया और नये पीत वस्त्र पहनकर वह चल पड़ा। वह ऐसा लग रहा था मानो खिले हुए कनेर-पुष्पोंका समूह हो या फिर स्वर्ण-पुंज