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पउमचरिड
_ [१६] तं णिसुणेषि विरुद्ध - मण सुरवर-करि-कुम्भयल-यण ।
. लखण-राम-पसंखणंण पजलिय - कोव - हुवासमेज ॥१॥ 'मरु कहि तणउ रामु कहि लक्खणु । अज्नु पाई तउ ऊधु इसाणणु ॥२॥ सम्भर सम्भल इदा - देवउ । मंसु विहोंषि भूभई देवड ॥३॥ लाह लुमि तुह तणयहाँ णाम । जिह ण होहि रामण रामहाँ ॥४॥ एउ भणेपिणु रिड - पतिकूलें । थाइय मन्दोमरि सहूं सूखे ॥५॥ मालामालिणी घिसहुँ जालें । कहाली कराल - करवालें ॥६॥ विजुप्पह विजुजल - या दसणालि सतुप्पा . सी li७ii हृयमुहि हिलिहिलन्ति उचाइय । गयमुहि गुलगुलन्ति संपाइय ८॥ तं वल णिऍवि तियॉ भीसाणहुँ । कालु कियन्तु वि मुबह पाणहुँ ॥३॥
घत्ता तेहएँ घि कालें पटिवण्ण' विणु रामें बिणु लक्खणण । वइदेहिहे चित्त ण कम्पिड दिव-यलेण सीलहाँ तणेण ॥१०॥
[.] तं उश्वसागु भयायणउ अण्णु विसीय दिवसणड । - पखंवि पुलय-विसह-भुड अग्गु पसंसहुँ पक्षण सुरु॥३॥ 'धार धीरउ होइ णियाण वि । हुमन्तऐ जीविय · श्रवसा वि ॥२॥ तिमहं होई जं सीय, साहसु । तं तेहउ पुरिसहों विग बसु ॥३॥ पहा बिहुर • काल वहन्त । सामि तणएँ कलने मरन्तएँ ॥४॥ जह मई अप्पउ गाहि पगासिउ । तो अहिमाणु मरटु विणासिउ ॥५॥ गुम भणेपिणु लडशि - विहाधउ । अहिणव- पिलर- बस्य- णियस्थउ ॥६॥ ण कणियारि - णिवहु पाफुझिउ । णं कलहोय - पुम्नु संचलिक ॥७॥