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বান্ধবিত্ত
[४] तं णिसुणवि हरिस-पसाहिएण । 'पइसरउ' पबत घिराहिएण ॥॥ 'हउँ धण्णउ जसु किक्किन्धराउ । अहिमाणु मुएप्पिणु पासु आउ ॥२॥ संमाणिउ गउ पल्लट् टु दूउ । पइसारिउ पहु आणन्दु हुउ ।।३।। तं नूरहूँ सदु सुगेवि तेण । सो वुत्त विशहिउ राहवेण ॥४|| 'सहुँ साहणेण कष्टइय-देहु । आवन्त: दोसई कवणु पहु' ।।५।। तं विवि कपमाम द मुना नदीयर-णन्दोण ॥६॥ 'सुग्गीब-वालि इय भाइ वे वि । बडारउ गड पचत्र लेवि ॥७॥ मुहु बि जिणेवि केण वि खलेगा । वण वासही घलिउ भुष-वलेण ॥८॥
घत्ता
वर-वाणर-घउ सूररय-सुड तारा-वल्लहु विउलमइ । जो सुब्बइ कहि मि कहाणए हिऍहु सो किछिन्धाहिवह ॥३॥
[५]
स-विराहिय लक्षण-रामएव । वोल्लम्ति परोप्पर जाव एव ॥३॥ तिणि मि सुग्गीवें दिE केम । आगमण तिलोभ तिवाय जेम ॥२॥ बउ दिस-गय एकहि मिलिय णाई। वासारिय परवइ जम्बवाह ॥३॥ संमाणे वि पुरिक्षय लक्खणेण ! 'तुम्ह हैं अवहरिउ कल सु केज' १। तं वयणु सुर्णे वि सन्चहुँ महन्तु । णमियाणणु पभणइ अम्बवन्तु ||५|| 'वण-कील गड सुग्गीउ जाम । घिउ पइस वि विहसुग्गीउ ताम ॥६॥ योवन्तर वालि-कणि टु आउ । सामन्त - मन्ति - मण्डल-सहाउ ।।७।। पउजाणिउ विहि मि कवणु राउ । मग विम्भउ सवहाँ जणहाँ जाउ ||