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पउमचरिख
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एतिउ ममि संदेहें । जह भालिमणु देह सगैहें | सं णिमुणेवि दसाणणु हरिसिउ । सम्बगिड रोमन परिसिङ ॥6॥
घत्ता जो वधि चप्पधि भरियउ सयल भुवण-संतावणहाँ। सो हरिसु धरन्त-धरम्हों अ ण माइउ रावणहाँ ॥३०॥
[१ ] जोहउ मन्दोमरिह मुहु 'कन्तें पडीची जाहि सुहुँ।
अब्भरहि धयरटु-भाइ महु आलिजणु देइ जइ ॥१॥ तं णिसुणेवि अणागय - जाणी। संचलिय मन्दोरि राणी ॥२॥ ताएँ समाणु स-दोर स-णेउह । संचलिउ सयलु वि असेउरु ॥३॥ # पप्फुग्लिय-पय-अयणा । * कुंबलय - इल-दाहरणियाउ ॥४॥ जं सुरकरि-कर-मन्थर-गमपाउ । जे पर-परवर- मण-जरवणउ ||५||
सुन्दरु सोहरगुग्धवियर । जे पीणग्यण · भारोणमिया ॥६॥ मणहरु तणु-मझ-सरीरउ । जे उरयड - णियम्ब - गम्भीरउ ॥७॥ पय-णेवरूधण-झकारउ । जं रलोलिर-मोसिय-हारउ ॥८॥ कच्ची कलाव-पम्भारउ । जं विम्भम-भूभा-वियारउ ॥॥
घत्ता त हाउ रावण-केरउ अन्तेउरू संचलिया । णं स.भमरु माणस-सरवर कमलिणि-वणु परफुल्लियउ ।। १०॥
[१२] उण्णय-पीण-पओहरिहि रावण-णयग-सुरिहि ।
लभिखय सीयाएवि किह सरियहि सायर-सोह जिह ॥१॥ पिम्मियलम्यण ससि-जोहा इव । तिति-विरहिय अमिय-तण्हा इव ॥२॥ णिध्वियार जिणवर-परिमा इव । रइ-विहि विपणाणिय घडिया इव ॥३॥ अभयकर जीव-दया इष । अहिणव-कोमाल-वपण लया इव ॥४॥
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