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पउमचरिउ
ण गण हि लिहिलन्त हय पश्चल । ण गणइ रहवर कणय-समुजल ॥६॥ सगणई सालङ्कार स-गेउरु । मणहरु पिण्डवासु भन्तेउरु ॥७॥ ण गणइ जल-कालउ उजाणइ । जाणई जम्पाणई स-विमाण ॥८॥ सोयह वयणु एक्कु पर मण्णइ । भणमि पीवर जा आयण्णा ॥१॥
वत्ता जइ एम विपा किउ णिवारिक तो आयामिय-आइवहीं । रण हणुव तुमु पेक्खन्तहरे होमि सहमउ रामबही' :.
[ ] तं णिसुणेप्पिणु पवण-सुउ स-रहसु पुलय-विसह-भुत ।
पडिणियत्त विवरम्मुहाउ गउ उज्वापाहाँ सम्मुहउ ।।१।। पट्टणु गिरवसेसु परिसेस चि । अवलोयणियह बलेंट गवेस वि ॥२॥ रबि-अत्यवणे सुहृल-चूडामगि । पवरुनाशु पहिउ पावणि ॥३॥ जं सुरवरतरूहि संकृण्ण ! मचिय-कलोहि रवण्णा था लबलीलय - सवा - णार हिं । चम्पय-वउस - तिलय पुण्णग्गहि ॥५॥ तरल - तमाल - ताल-तालरें हिं । मालइ - माहुलिश - मालरहि ।।६।। भुअ-एउमक्ख - दक्ख-खधरहि । काम - देवदार • कपरहि ॥७॥ वर - कामर - करीर-करवन्त हि । एला-ककोलेहि सुमन्दहि । पम्दण-वन्दहिं साहारहि । एव सरूहि अणेय पयारहि ॥६॥
पत्ता सहाँ वहाँ म हणुवम्सण सीय गिहालिय धुम्मणिय । मं गयण-मागें उम्मिझिय चन्द लेह वीयह तणिय ॥१०॥
[८] सहिय सहालहि परिपरिप णं व-देवय अवयरिय । शिल-मित्तु गऽवलास जा गिणिजइ काई वहें ॥॥