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पउमचरित
बेमु कुसलु कि णिय-कुल-नीचहुँ । गल - गालकाय - सुग्गीवहुँ ।। कुन्दिन्द हुँ माहिन्द - महिन्दहुँ । ब्रम्पध - गषय- गमक्ख-णरिन्दहुँ ।।।। अङ्गण - पत्रणञ्जयहुँ सु - खेउ' । पुणु वि पुणु वि जे पुछिन एड ॥६॥
पसः विहसेवि घुस हणुवन्तण 'खेमु कुसलु सम्यहाँ अणहो । पर कुर्धहि लक्षण-रामेंहि अकुसलु एक्कु दसाणणहाँ ॥१०॥
[२] पुणु वि पुणु नि कपड्य-भुउ । भणइ पडोवड पवण - सुर । 'गुड बिहासण थाउ मण । तुजय हरि बल होन्ति रणे ।।
सुमण- दुअइ सुमरन्सिया
__सहुँ छलेण सहरिस पश्चिया ।।१।। अच्छइ रामचन्दु भारुटुउ । पवागणु चिों मुट्ठल ॥२॥ 'अच्छा अजु कल्ले संचलमि । पलय - समुद्ध जेम उरथामि ||३|| अइ अन्जु कल्ले आसमि । गोपउ जिह रयणासरु लमि ।।४।। अच्छइ अन्हु कल्ले बलु वुझिमि । हरिहि समउ रणों जुज्झमि ।।५॥ अच्छाइ अज्जु कल्ले अब्भिमि । दहमुद्द-वल - समुटु ओहमि ॥६॥ अच्छह अज्ज़ कल्ले पुरै पइसमि । रावण-सिरि-साहासणे वहसमि ।।७।। अच्छा भज्नु करलें. रिउ - केरउ । वाणे हि करमि सेफ्णु विवरेरउ ।।६।। श्रम्छह अज्जु कतले पीसेसई । लेमि छत्त-धय- चिन्ध- सहासई ॥६॥
घता ते कज्ज आउ गनेसउ हउँ सुग्गीवहाँ सध्यण । मं लकाहिष कप्पब्दुमो उज्झउ राम हुवासणेण ॥१०॥
अपणु विहीसण एउ मुणे जम्वव - केरउ क्यणु सुणे । "प होन्तेण वि चल-मणहो बुद्धि ण हुआ इसापणहाँ।
सुमण-दुअई सुमरन्तिया ॥१॥