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एस्कूणपण्णासमो संधि
११३ और कुशल तो है ! नल, नील, माहेन्द्र, महेन्द्र, जाम्बवन्त, गवय, गवाक्षादि राजा, अंजना और पवनञ्जय ये सब क्षेमसे तो हैं ?" तब हनुमानने हँसकर विभीषणसे कहा कि "सब लोग कुशल-क्षेम से हैं। किन्तु राम-लक्ष्मणके क्रुद्ध होनेपर केवल रावणकी कुशलता नहीं है" ।।१-१०||
[२[ पुलकितबाहु हनुमानने बार-बार दुहराकर यही बात कही कि विभीषण ! तुम तो अपने मन में इस बातको अच्छी तरह तौल लो कि रामके कुपित होने पर उसकी सेना अजेय है। और तब सुमन द्विपदी छन्दको याद करके सेना सहित हनुमान नाच उठा। फिर उसने कहा कि यदि रामचन्द्र थोडा भी रुष्ट हैं तो मानो सिंह ही कुपित हो उठा है। वह (अभी) रहें, मैं ही
आजकलमें प्रस्थान कर रहा हूं। मैं प्रलय-समुद्रकी तरह उछल पगा। आजकल ही में मैं समर्थ हो उडूंगा, और गोखुरकी भाँति समुद्र लाँघ जाऊंगा । वह रहें, मैं ही आजकल में सारी सेनाको समझ लूंगा, और बेरीसे जूडा जाऊंगा। वह रहें, मैं ही आजकल में भिड़ जाऊँगा और शत्रु-सेना रूपी समुद्रको मथ डालूँगा । आजकलमें मैं ही नगर में प्रवेश कालंगा और रावणके लक्ष्मी-सिंहासन पर बैठूगा। बह रहें, मैं ही आजकलमें तीरोंसे शत्रुकी सेनाको विमुख कर दंगा। वह रहें, आजकल में, मैं निशेष संकड़ों छत्र-ध्वज और चिह्नोंको ले लूंगा। इसी कारण मैं सुग्रीवके आदेशसे खोज करनेके लिए आया हूँ, कि कहीं रामरूपी आगसे रावणरूपी कल्पद्रुम दग्ध न हो जाय ॥१-१०॥
[३] और भी विभीषण ! जाम्बवन्तका भी यह वचन सुनो और विचार करो। उसने कहा है-"तुम्हारे होते हुए भी चंचल