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पडमचरित
पत्ता गम्पिणु भुवण - विजिग्गय - गामही सुग्गीय दरिसाविउ रामहाँ। सेण वि कामिणि-यण-परिवहणु विष्णु स यंभु एहि अवस्णु ॥६॥
[ ४८ अट्ठचालीसमो संधि] सविमामलों णहपल जसाहाँ छुहु लादरि पइसन्ताहाँ । निसि सूरहाँ गाहूँ समावडिय भासाली इणुषहों अभिडिय ॥
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तो एण्यन्तरे ।वह-विसालिया । जुज्य समोरति विय सामिपाल नरेन 'मरु मरु महए । मापड दरिला । मई अवगण वि ।ऍहुको पाइसइ ॥तेन तेन तेन-धित ॥२
जम्मेटिया] को सहइ हुअवहें झम्प देवि । आसीविसु भुअहिं भुगा लेवि ॥३॥ को सकाइ महि फक्खएँ छुहेवि । गिरि - मन्दर - अरुल-भावहेवि ॥४॥ को सका जम - मुहें पइसरेवि । भुभ - वलेण समुदु समुत्तरेवि ॥५॥ को सकइ असि - पारें परेवि | धरणिय - फणालिह मणि खुडेवि ॥३॥ को साह सुर-करि-कुम्भु दलेंचि । गयणकणे दिणयर - रमणु खलवि ॥७॥ को सकाइ सुरवह समर इणवि । को पइसइ मई तिण-समु गोवि' ॥॥
चत्ता तं ययण सुर्णेवि जस-लुद्धपण हणुवन्त अमरिस-कए ण । अपलोड्य विकास-मचरण मेइणि पलय - सणिकरण ॥३॥