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पउमचरित
छन्चीसमो संधि
लक्षण-रामहुँ धवलुजल-कसण-सरीर। एक शिका - ।
अवरोप्परु गोलिप-गःहिं। सरहसु साइड देवि सुरम्भ हि ॥ १॥ सीहोयह णमन्तु वहसारिड। साक्षणे वजयण्णु हकारिउ ॥२॥ स? णरवर-जणेण गोसरियउ । णाद् पुरन्धर सुर-परिपरिपउ ॥३॥ रेहड विजुलछु अशुपच्छएँ। परिचा-इन्दु व सूरहों पच्छएँ ॥४॥ सं इटाल-धूलि-धुभ-प्रवल। सहसकूहु गय पस जिणाला ||५|| घडदिसु पयहिण देवि तिवार'। पुणु अहिवन्दण करइ भदारएँ ॥३॥ से पियवक्षण-मुणि एणप्पिणु। पलहौंपा थिउ कुसल मणेपिणु ॥७॥ दसउर-पुर-परमेसर रामें। साहुकारिउ सुहट-णिसाम ॥८॥
घत्ता 'सचा परवड मिच्छत्त-सरहिं पर मिजहि । दिव-सम्मन्तण पर तुच में तुहुँ उमिजहि ॥९॥
[२] सं गिपुणेषि पयम्पिड राएं। 'एउ सख्खु महु तुम्ह पसाएं' ॥१॥ पुशु वि तिळोय-विणिग्गय-गा। विजुका पोमाइड रामें ॥२॥ 'मो दिव-कक्षिण-षिय-वसछत्थक | साहु साहु साहम्मिय-बच्छन ||३॥ सुन्दर किउ जे स्वइ रक्रिसठ। रणें अच्छन्तु ण पाहू उम्बेक्सिर' ४॥ तो एस्थम्सरे चुतु कुमार। 'जम्पिएण किं बहु-विस्थारें ॥५॥ हे दसउर-णरिन्द घिसगइ-सुआ। जिणवर-चलण-कमल-फुलन्धु !!६॥ जो खलु सुगु पिसुणु मच्छरियड। अच्छड़ ऍहु सोहोयरु परियउ ॥७॥ किंमारमि किं अपुशु मारहि। णे तो दय करि सन्धि समारहि ॥८॥