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________________ ८१ पंचवीसमो संधि कोई विरुद्ध होकर बार-बार निन्दा करता है कि धर्मको छोड़कर वह पापी किस प्रकार आनन्द मनाता है । कोई कहता है कि जिसने भोजन माँगा था, यह उसी ब्राह्मणके समान दिखाई देता है। तष कुमार शत्रुको अपने कन्धेपर चढ़ाकर उसी प्रकार ले गया जिस प्रकार राजकुलके द्वारा चोर ले जाया गया हो । अलंकारोंसे सहित, डोर और नूपुरोंसे सहित, दुर्मन, वचन और आँसुओंसे आनयन अन्तःपुर दौड़ा। वह हिमसे आहत कमलवनके समान था। अस्त-व्यस्त केशराशि, मुखसे कातर और एकदम करुण विलाप करता हुआ, अपने पतिकी भीख माँगता हुआ, उसके चारों पास स्थित हो गया ॥१-१०॥ [२०] तब रामकी पत्नी अपने मनमें शंकित हो उठी। मानो भयभीत कानल में अत्यन्त उदास और खिन्न हरिणी हो । "देखो-देखो राम, आती हुई सेनाको समुद्र जलकी तरह गरजती हुई। धनुष हाथमें ले लो, निश्चिन्त मत बैठे रहे। शायद युद्ध में लक्ष्मणका अन्त हो गया है ।" यह सुनकर महायुद्धका निर्वाह करनेवाले राम जबतक धनुष अपने हाथमें लेते हैं, तबतक कुमार नारियोंसे घिरा हुआ उसी प्रकार दिखाई दिया, जिस प्रकार हथिनियोंसे घिरा हुआ हाथी हो। शत्रुओंका नाश करनेवाले रामने उसे देखकर सीतादेवीको अभय वचन दिया कि "देखो सिंहोदर किस प्रकार बाँध लिया गया है जैसे सिंहके द्वारा सियार उठा लिया गया हो ।" जब तक (पन दोनोंमें) इस प्रकार बातचीत हो रही थी कि तबतक लक्ष्मण पास आया । विकट मस्तक वह चरणों में पड़ गया, उसी प्रकार, जिस प्रकार भक्त हाथ जोड़कर जिनवरके चरणों में पड़ जाता है। देव-भवनों में जिनका नाम प्रसिद्ध है ऐसे रामने 'साधु' कहकर लक्ष्मणको अपने बाहुफलकोंसे आबद्ध कर लिया ॥१-१०||
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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