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________________ पंचवीसमा साध खिन्न हो गया और पोपले मुखवाला वह अपने प्राण लेकर भागा। तबतक कुमारने विद्याधर करण रचकर, हाथीके सिर, पर पैर रखकर राजा सिंहोदरको पकड़ लिया ॥१-१|| [१८] जीवके लिए प्राइके समान राजाको जष लक्ष्मणने पकड़ लिया तो किसीने तत्काल जाकर वजकर्णसे कहा--"है राजाओंके राजा, आश्चर्य है । देखिए शत्रुपक्ष किस प्रकार क्षतविक्षत हो गया है। यह घड़ोंसे अवच्छिन्न है, रक्तसे शोभिव और नाना प्रकार के पक्षियोंसे घिरा हुआ है। कोई मलयान् प्रचण्डवीर शत्रुसे झगड़ता हुआ यमकी तरह घूम रहा है। गजघटा, भडघटा और सुभदोंको चलाता हुआ, हाथियोंके सिरकमलोंके समूहको तोड़ता हुआ यह रुकता है, पुकारता है, पहुँचता है और ठहर जाता है, मानो युद्धमें झय. काल मँडरा रहा हो। भृकुटियोंसे भयंकर, कठोर ईर्ष्यासे भरा हुआ वह इस प्रकार स्थित हो गया, जैसे शनि हो । हम नहीं जानते कि वह गण ( देव) है या गन्धर्व है या क्या कोई तुम्हारा छिपा हुआ मित्र या बन्धु है। क्या किन्नर, मारुत या विद्याधर है ? क्या ब्रह्मा है ? सूर्य है या वासुदेव या बलदेव है ? उसने महायुद्ध में दस हजार मानमें सिंहाजनरेन्द्रको भी धराशायी कर दिया। और भी मत्सरसे भरे हुए उसने जीवमाही सिंहोदरको पकड़ लिया।" अकेले होते हुए उसने समूची सेनाको आन्दोलित कर दिया है। मानो मन्दराचलकी पीठने समुद्र के जलको विलोड़ित कर दिया हो ॥१-१२|| [१९] वह सुनकर, कोई अपने मनमें सन्तुष्ट हो गया। उठे हुए जंपानसे कोई उसे देखने लगा । कोई मत्सरसे भरकर बोला कि अच्छा हुआ जो सिंहोदर पकड़ा गया । जिसने अपने हाथसे दूसरोंको मारा था वह पापी दूसरेके हाथसे मारा गया। हे वझकर्ण, तुम राज्यका अनुभोग करो।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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