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________________ च न म [ १६ ] जब लक्ष्मणने समस्त प्रतिपक्षको नष्ट कर दिया तो, सिंहोदर पट्ट बन्धन नामक गजवरपर चढ़ गया, वह इस प्रकार सम्मुख चला, जैसे प्रलय समुद्र ही उछल पड़ा हो, सेनारूपी आवर्तसे युक्त नित्य गर्जन करता हुआ; प्रहरणरूपी जलके कण छोड़ता हुआ, ऊँचे घोड़ोंरूपी लहरोंसे व्याप्त, मतवाले महागजों के घण्टारूपी तट से संकुल, जठे हुए धवल छत्रोंके फेनसे अवल, ध्वजरूपी लहरोंका महाजल जिसमें चल रहा है ऐसे भयंकर महासमुद्रको जब लक्ष्मणने आते हुए देखा तो वह मन्दराचल पर्वतकी तरह वहाँ पहुँच गया । अत्यन्त दृढ़ वह चलता है, मुड़ता है और इस प्रकार घूम जाता है, जैसे चंचल और चल विलासिनी गण हो । पकड़ने के लिए राजासे राजा, घोड़ोंसे घोड़ा, गजेन्द्रसे गजेन्द्र, रथिकसे रथिक, चकसे चक्र, छत्रसे छत्र और ध्वजाप्रसे ध्यजाम आहत कर दिया गया । भौहोंसे भयंकर लक्ष्मण जहाँ-जहाँ जाता है, वहाँ-वहाँ धरतीमण्डल धड़ोंसे अवच्छिन्न दिखाई देता है ।।१-१०॥ [१७] जब लक्ष्मणरूपी मन्दराचलके द्वारा शत्रुरूपी समुद्र मथ दिया गया तो सिंहोदर अपने हाथीके साथ दौड़ा और लक्ष्मणसे भिड़ गया। जिनका मन दुर्थार शत्रको पकड़नेका है, जो प्रहरणोंको निकालकर घुमा रहे हैं, जो मतवाले गजोंको उखाड़नेवाले हैं, प्रतिपक्ष और पक्षका संहार करनेवाले हैं, सुरघर-बधुओंको सन्तुष्ट करनेवाले हैं, जो अपने मुजदण्डोंसे प्रचण्ड और हर्षित मन हैं, ऐसे लक्ष्मण और सिहोदर राजाओंका युद्ध होने लगा। इसी बीच सिंहोदरको धारण करनेवाले गजवरने हर्षसे उत्कट और पुलकसे विशिष्ट शरीर लक्ष्मणके उरपर इस प्रकार आघात किया; मानो शुक्रने सजल मेघसे क्रीड़ा की हो। उसने अपने हाथसे पकड़कर हाथीके थर्राते हुए बोनों दाँत उखाड़ लिये। अपने मनमें त्रस्त वह महागज
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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