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पउमचरिख
[१६] जं पहिवक्वु सयलु णिलिड रूपरषणेणं ।
गयवरें पवग्धणे पहिउ तक्खणेणं ॥१॥ अहिमुडु सीहोपर संचालित । पलय-समुटु णाई बस्थति ॥२॥ सेण्यावत निम्तु गजन्तड । पहरण-तोय-तुसार-मुअन्तउ ॥३॥ तुझ-सुरा-सर-समाउछु । मत्त-महागय-घर-घेलाउनु ॥४॥ उब्भिय-धवल-छत्त-फेणुजलु भय-कलोल-बलस्त-मद्रावल !!५।। रिख-समुद्धर्ज दिट्टु भयकरु ।। सरवणु कुछु णा गिरि मन्या ॥६॥ चलइ धकई परिममइ सु-पञ्चलु। णाई विलासिणि-गणु चालु चञ्चलु ॥७॥ गेण्ह वि पहउ परिन्दु परिन्दें। तुरए सुरउ गइन्दु गहन्दें ॥८॥ रहिए रहिउ रह रहनें । छसे छत्तु धयग्गु धषयगें ॥९॥
घत्ता जउ जज लक्खा परिसका भिडि-मयर । तउ तर दोसइ महि-मण्डल रुण्ड-णिरन्तर ॥१०॥
जं रिउ-उअहि महिउ सोमित्ति-मन्दरेणं ।
सीहोयह पधाइओ समउ कुअरेण ॥१॥ अमिट छ जुज्य विपिण वि जणाहँ। उज्जेणि-णराहिव-सक्सणार ॥२॥ दुपार-वहरि-गेण्हण-मणाहूँ । उग्गामिय-भामिय-पहरणा ॥३॥ मयमत्त-गवन् दारणाहँ 1 पढिवश्व-पक्स-संवारणा ॥४॥ सुरबहुम-सस्थ-तीसावणा। सीहोयर-लक्षण-णरवराहँ ॥५॥
। भुअ-दण्ड-चपद-हरिसिय-मणा ॥६॥ एरथन्तरें सीहोयर-धरेण । उरें पेल्लित लक्षणु गयबरेण ॥७॥ रहसुब्भड पुलय-विसष्ट-देहु । णं सुकं खीलिउ स-जल मेहु ॥८॥
लेवि भुभम थरहरन्त । उपाहिय दन्तिह के वि दन्त ॥५॥ काविड मयगल मणेण तद्छु । विवरम्मुहु पाण छएषि णट्छु ॥१०॥