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________________ पंचसमा संधि गधेपर चढ़ाकर नगरमें घुमाओ।" यह सुनकर नरश्रेष्ठ गरजते हुए इस प्रकार उठे, जैसे नवजलधर हो। बहुत ईर्ष्यासे भरे हुए और मारो-भारो कहते हुए जैसे वे कलिकाल, यम और शनिश्चर हों, मानो अपनी मर्यादासे चूका हुआ समुद्र हो, मानो महाषतसे रहित महागज दौड़ा हो। कोई अपने हाथमें तलवार निकालता है, कोई भयंकर गदाशनि घुमाता है, कोई भयंकर धनुष चढ़ाता है, और अपने स्वामीकी वफादारी बताता है। जो फड़कने हुए अधरों और भौंहोंसे भयंकर हैं ऐसे राजाओंने लक्ष्मणको उसी प्रकार घेर लिया जिस प्रकार सियारोंके द्वारा सिंह घेर लिया गया हो ॥१-१०॥ __ [१५] या मेघोंके द्वारा सूर्य घेर लिया गया हो। तब दुर्वार शत्रुओंपर आक्रमण करनेवाला वह ( लक्ष्मण ) धरतीको रौंदता हुआ उठा। वह रुकता है, मुड़ता है, दौड़ता है, शत्रुको अवरुद्ध करता है, जैसे किशोरसिंह उछल रहा हो, मानो मदसे विह्वल ऐरावत हो । वह महाबली सिरकमलोंको तोड़ता हुआ मणि मुकुटीको दलित करता हुआ राजाओंके ऊपर उसी प्रकार पहुँचा जिस प्रकार गजराजोंके ऊपर सिंह पहुँचता है। किसीको कुचलकर उसने पैरोंसे चूर-चूर कर दिया, किसीको टक्करोंके आघातसे नष्ट कर दिया। किसीको हाथसे आकाशमें उछाल दिया, चिल्लाते हुए किसीको धरतीपर गिरा दिया। किसीसे मेषको झड़पसे भिड़ गया, कोई हुंकार और चपेट से खिन्न हो गया ? हाथियोंके वाँधनेके खम्भेको उखाड़कर और फिर बाहुओंके द्वारा धुमाकर इस प्रकार छोड़ दिया जैसे यम अपना दण्ड छोड़ दिया हो, मानो शत्रुओंके लिए झयकाल आ नाया हो। आलान-स्तम्भको घुमाते हुए उसने धरतीको धुमा दिया। गिरते हुए उस खम्भेने साथ दस हजार राजाओंको धराशायी कर दिया ॥१-१०॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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