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________________ पंचवीसमो सधि तक युद्धभूमिमें सज्जित होकर स्थित होता है, तबतक समूचा सैन्य वहाँ पहुँच जाता है। चारों ओरसे अमर्षसे क्रुद्ध नरवर समूहोंसे घिरा हुआ नगर ऐसा लगता है जैसे चार समुद्रोंसे धरतीतल घिरा हो ।।१-१शा [५] हाथियोंको पर्याणोंसे सजा दिया गया, श्रेष्ठ घोड़ोंको कबच पहना दिये गये। कवच पहने तुम पुलकितांग योद्धा आपस में भिड़ गये। एक दूसरेपर कोलाहल करती हुई सेनाओंमें युद्ध होने लगा। जिसमें बजते हुए नगाड़ोंका कोलाइल हो रहा था, जिसमें मदमाते महागंजोको विभूषासे अंकित किया गया था, जिसमें एक दूसरेपर सब्बल फेके जा रहे थे, भुजाओंसे वक्षस्थल छिन्न-भिन्न हो रहे थे, जिसमें ध्वजमाला कुल नष्ट हो रहा था, जिसमें ( लोग) प्रतिहारोंसे विधुर और विह्वलांग हो रहे थे। जो भयावने नेत्र और चनाते हुए ओठोंवाले थे, जो तलवार, झष, तीर और शक्ति प्रहरणोंको धारण करनेवाले थे, जिन्होंने सुप्रमाणित धनुष हाथोंमें खींच लिये थे, जिन्होंने गुणदृष्टि और मुट्ठीसे सरोका सन्धान कर लिया था, जिसमें गजघटाएँ लोटपोट हो रही थीं, जो कायर नरोके मनों के लिए सन्तापदायक थे ऐसे वकर्ण और सिंहोदरमें विजयके लिए रण हुआ। युद्धरत दोनोंके समर प्रांगण में दुन्दुभि बज उठती है। उन दोनों राजाओं में से युद्ध में एक भी न तो जीतता, और न जीता जाता ।।१-१०॥ [६] वे मारो-मारो कहते हैं, मारते हैं और मार खाते हैं। युद्ध में मरते हैं या मारते हैं, परन्तु एक भी कदम नहीं हटते। दोनों सेनाओंके द्वारा अभिम सेना गिरा दी गयी, दोनों सेनाओंके द्वारा कबन्ध नचाये गये, दोनों सेनाओंके द्वारा ध्वजपट मसल दिये गये, दोनों सेनाओंके द्वारा भटसमूह धराशायी कर दिया गया। दोनों सेनाओंके द्वारा हाथीं और
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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