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पउमचरित उहय-वले हिँ गिनसिय खगाई। उहय घलें हिं वेबन्धि विहाई ॥५॥ उदय-चलें हिं णीसाह तुरई। उहय-चलई पहरण-स्वर-विहुरई ॥३॥ उहय-वलइँ गय-दन्त हिँ मिण्णहूँ। उहय चल िरण-भूमि-णिसण्मा ।।।। ठहय-बल रुहिरोलिय-गतहूँ। -- मुभम्तई ॥८॥ एम एक्ल व संगामही'। अक्खइ सीरकुम्बिउ रामों ॥९॥
घत्ता
सं णिसुणेपिणु मणि-मरणय-किरण-फुरन्सज । दिण्णु ज-हत्येण कण्ड का कबिसुत्ता ॥१०॥
[.] पुणु संचल्ल वे चि वलएष-वासुएवा ।
जाण-करिणि-सहिय गय गिल्ल-गण्ड अवा ॥५॥ घाव-विहस्थ महस्थ महाझ्य। साहसकडु जिणमवणु पराइय ॥२॥ ज इद्याल-घवलन्छुइ-पक्किड । सज्जपा-हियड जेम भकाहिल ॥ जं उसुङ्ग-सिहरू सुर-कित्ति: । षण्ण-विचित्त-चित्त-चिर-चित्तिउ ॥१॥ से जिणभवणु णियवि परितुहर। पयहिण देवि वि-वार पट्टा ॥५॥ तहि धन्दुप्पह-षिम्वु णिहालिउ । जं सुरवस्तर-कुसुमोमालिड ॥६॥ जणागेन्द-सुरेन्द-परिन्दहिं । वन्दिउ मुणि-विजाहर-विन्दहि ॥७॥ दिछ सु-सोहिट सोम्मु सुन्दसणु । अण्णु मिसेय-हमरु सिंहासणु ।।४।। छत्त-तउ असोउ भा-मण्डलु । लच्छि-विहूसिउ वियड-उरस्थल ॥९॥
यत्ता किं वहु ()-चविण अमें को पतिविम्वु उविजह । पुणु वि पीवड सइ णा पाहुबमिजइ ॥१०॥