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पउमचरिउ
थि रण भूमि पलावि जानेंहिँ । सयलु वि सेण्णु पराड तायें हिं ॥१०॥
घता
अमरिस कुठे हिँ चउपासेंहिं णरवर-विन्दहिं ।
वेटिड पट्टणु जिम महियलु चहिँ समुद्दहिं ॥११॥
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[ ५ ]
किय गय सारि-सज एक्खरिय वर-तुरा कच - णिव जोड़ अमिट्ट पुलइयङ्गा
॥
शुभ
मिट्ट्टु जुज्नु हि धि षकाएँ । अवरोप्यरु वनए-कलषाएँ ॥२॥ बसोह- चंडाविय मयगला ॥३॥ 1-छिण्ण भिण्ण-वला ॥ ४ ॥ पढिपहर - विदुर- विहला ॥५॥ असिस सर-सप्ति-पहरण-धरा ॥ ६ ॥ गुण-दिट्ठिी-मुट्ठि-सन्धिय - सराहँ ॥ ७ ॥ कायर-र-मण-संतावणाएँ ॥ १८ ॥ र वजण सीहोरा ॥९॥
वजन्त- तूर- कोलाहलाएँ मुझे मेक-सर-सवलाएँ । लोट्टाविय-धय मालाउ है । णिङ्करिय-वण-दसियाहराएँ । सुपमाण- चाच- कट्टिय कराएँ । दुग्धो यह लोट्टावणाएँ । जयकारों कारण पुराहूँ ।
घत्ता
विहि मि मिदम्तहिं समरणें दुन्दुहि वजइ ।
विहि मि गरिन्द्र हैं रणें एक्कु वि जिगह पण जिजइ ॥ १० ॥
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"हणु हणु [ हणु ]" भणन्ति सम्मम्ति आहह्णन्ति । पड विण ओसरन्ति मारन्ति रणें मरन्ति ॥ १ ॥
उश्य-बसें हिँ पडियरिंगमधहुँ । उहय-वले हिँ बन्ति कबन्ध हूँ ॥ २ ॥ उहष बल हिँ सुसुमूरिय भयवद । उहय चलें हिं छोट्टाविय भव थद ॥३३॥ उहय वलेहिं हयगय विशिषाय । उहय-वलें हिँ कहिरोह पधाय ॥४॥