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________________ पंचवीसमो संधि [१५] विजकूट को छोड़कर दुरूप यशपुरको सीमामें पहुँचे । वहाँ उन्होंने महासरोवर देखा, जो कमलोंसे शोभित था, सारसों और हंसोंको आवली तथा बगुलोंसे चुम्बित था । समै सुन्दर पत्तोंवाले उद्यान मुनिवरोंके समान सुफल और सुन्दर पत्रों ( पात्रों और पत्तों) वाले थे। चावलोंसे युक्त शालिवन इस तरह प्रणाम करते हैं, मानो नायक जिनेश्वरको प्रणाम कर रहे हों। इलों ( पत्तों) से लम्बे शरीरवाले गन्नेके खेत अपने (पति/प्रति ) उल्लंघन करनेवाली दुष्कलरके समान प्रतीत होते हैं। कमल और नवनील कमलकी तरह श्याम रामलक्ष्मणको वहाँ प्रवेश करते हुए सीरकुटुम्बक नामक मनुष्य दिखाई दिया, जो व्याधासे त्रस्त हरिणकी तरह था। हडड कर फूटते हुए सिरवाला, चंचल नेत्र, प्राणोंसे नष्ट ? प्रचण्ड मुखवाला? अपने सुरवरके ऐरावतके समान प्रचण्ड मुजदण्डोंसे कुमार भागते हुए उसे पकड़कर राम के पास ले आये ॥१-५।। पचीसवीं सन्धि दुर्वार शत्रुके लिए समर्थ तथा धनुष है हाथमें जिनके, ऐसे रामने अभय पचन देकर सीरकुटुम्बकसे पूछा। [१] दुर्दम दानवेन्द्रोंका जिन्होंने महायुद्ध में मर्दन किया है ऐसे रामने कहा, "अरे अरे-अरे ! तुम दुःखी क्यों हो?" यह सुनकर गृहपति कहता है-वभकर्ण नामका मनुष्योंका अच्छा राजा है। वह सिंहरथ का हृदयसे इच्छित उसी प्रकार अनुचर है जिस प्रकार भरत ऋपभके आज्ञाकारी थे। दशपुर• का राजा वनकर्ण जिनभक्त है। प्रियवर्धन मुनिके पास उसने
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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