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पउमचरित जिणवर-पश्चिमअहम् केप्पिण। भपणही पवह ण णाहु मुएप्पिणु ॥५॥ वाम-मन्तिहि कहिउ गरिम्यहाँ । "पइँ भवगपणे विणवह जिणि दहीं॥ संणिसुणेवि वयणु पछ कुखुट। णं खय-का किया विरुद्ध ॥७॥ कोषाणक-पलितु सोहोथरु । गिरि-सिहरें माइन्ध-किसोयह ॥८॥ 'जो माँ मुऍषि कपणु जयकारह । सो किं हय गय र ण हारह ॥९॥
पत्ता अह किंबहुएंण कल्लएँ दिणयरें अस्थम्तएँ । जइ ण वि मारमि तो पइसमि जलणें जलन्तएँ ।
[१] पइज करेवि जाम पहु बाहवे अभनो ।
साम पइटु चोरु णामेण विज्जुलमी ॥१॥ पइसन्ते रयणि मलयालें। अलिउल-कमल-सण्णिह-समा ॥२॥ ते दिछु णराहिब विष्फुरन्तु। पलयाणलो क्च धगधगधगन्तु ॥३॥ रोमञ्च-करचु-कम्युझ्य-देहु । जल-गन्मिणु णं गजन्तु मेहु ॥४॥ सण-बद्ध-परियर-णिवन्धु। रण-मर-धुर-धोरिख दिण्ण-खम्धु ॥५॥ बलिषण्ड-मण्ड-णिड्डरिय-णयणु । दट्ठोठ्ठ सुख-विष्फुरिय-वयणु ॥३॥ "मारेषउ रिउ' जम्पन्तु एम। रषय-काले सणिच्छरु कुविउ जेम ॥७॥ "तं पेपरववि चिन्तइ भुअ-विसाल । कि मारमि णे णं सामिसाल ॥४॥ साहम्मिय-बन्छल किं करेमि। सब्वायरेण गम्पिणु कोमि'' |॥९॥ गउ एम भणे वि कण्टइय-सु । णिधिसखें दस उर-णयरू पतु ॥१०॥
घत्ता छुड्डु अरुणुग्गमें सो विजुलनु धावन्तर । दिछु णरिन्देष्य जस-पुजु णाई आवम्तउ ॥११॥