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पउमचरिउ
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दसउरपुर- सीमन्तरु पत्तहूँ ||१|| सारस - हंसा कि वग- चुवि || २ || मुनिवर इव सु-हाई सु-पत्तहूँ ||३|| हम किर
संचित एव तुरन्त हूँ । दिट्ट महासन कमल-फरयि । उहूँ सोहन्ति सु-पत्तहूँ । सालिवण पति सुनीं । उच्व दल-दीहर-गहूँ । पक्कय-पव- पीलुप्पल सामेंहिँ । सीरकुडुम्बर मणुस पदीसित । हडहद - फुट्ट - सीसु चल-गयणड ।
णिय वह छलहुँ व दुकलसहूँ ||५|| तहिँ पसन्त हि लक्खण- राम हिं ॥६॥ कुष्णु कुरकु व बाहुत्तासि ॥७॥ पाणकन्तु समुढ श्रयण ॥८॥
घत्ता
सो पासन्तु कुमारें सुरवर-कीर - खण्डे हिं । आणि राम पासु धरेविंस इं भु दण्डेहिं ॥ ९ ॥
[ २५. पंचवीसमो संधि ]
अणुहर-हर्येण दुब्वार-वइरि आयामें । सीरकुडुविउ मम्भीसेंषि पुच्छिउ रा ॥१॥
[] दुइम-दाणविन्द-मण- महाहवेणं ।
भो भो कि पिसन्धुलो बुत्तु राहवेणं ॥३॥
संणिसुकि पंजम्पिङ गहषछ । सीहोरहों भिक्षु हिच्छिउ दसउर-णाहु जिणेसर-मन्तड ।
बजयण्णु णामेण सु-णरषद् ||२|| भरहु व रिसह हाँ आणव ढिच्छिउ ॥ ३ ॥ पियवह पासें जब सन्तउ || १ ||