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________________ चवीसमो संधि शोभित था, मानो धान्यके प्रथम अंकुरोंकी नोकोंको अपने सिरपर धारण कर नाव उठा हो । कहींपर दही बिलोनेवालीकी मथानी इस प्रकार शब्द कर रही थी मानो जिस प्रकार विलासिनी कामक्रीड़ामें शब्द कर रही हो। कहींपर नारियों के नितम्बोंसे सुचासित वन ऐसा लगता था मानो कुटज पुष्प मुख सुवासित कर रहा हो । कहींपर बालकको झुलाया जा रहा था और 'हो हो' इत्यादि लोरी गीत गाये जा रहे थे। खियों और परिजनोंसे घिरे हुए उस गोठको देखकर जैसे मन तीनोंको अपने बचपनकी याद आ गयी ॥१-२।। [१४] स सुन्दा गोरको छोड़कर, फिर बनमें प्रवेश करते हैं, जो फल और पत्तांकी ऋद्धिसे सम्पन्न था । जो तरल तमाल और ताइवृक्षोंसे आच्छादित था। वह बन जिनालय की तरह चन्दन ( चन्दन वृक्ष, चन्दन) से सहित था, जो जिनेन्द्रशासन की तरह सावय ( श्रावक और श्वापदसे सहित) था । जो महायुद्धके प्रांगण की तरह सवासन ( मांस और वृक्षविशेष) से संयुक्त था, जो सिंहके कन्धेकी तरह केशर ( वृक्षविशेष और अयाल ) से सहित था, जो राजाके मन्दिरकी तरह माग्य ( मंजरी वृक्षविशेप) से युक्त था, जो सुनिबद्ध नृत्यकी तरह ताल (बृक्ष और ताल ) से सहित था, जो जिनेश्वरके स्नानकी तरह महासर ( स्वर और सरोवर ) वाला था, जो कुतापसके तपके समान मदासब' ( मद और मृग) वाला था, जो मुनीन्द्रके जीवनकी तरह मोक्ष (वृक्ष और मुक्ति ) की तरह था, जो महाकाझके प्रांगणकी तरह सोम (चन्द्रमा और वृक्षविशेष ) से सहित था, जो चन्द्रबिम्बकी तरह मद ( मृग और मद ) से आश्रित था, जो विलासिनीके मुखकी तरह महारसवाला था। उस बनको छोड़कर वे पूर्व दिशाको ओर गये । दो माह वे चित्रकूट में रहे ॥१-९||
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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