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________________ वडपोसमी संधि मानो रामकी इष्ट-कलन हानि हो । भानो वह कह रही है, "हे भरत ! तुम आओ, और राघव तुम वन जाओ, जाओ। व्याकरणकी कथा कैकेयी आती हुई दिखाई दी। जो सुपद (सु और आदिसे युक्त सुबन्तपद-अच्छे पैर), सुसंन्धि (सन्धिपदौसे सहित-अच्छी तरह गठी हुई ); वचन विभक्ति ( एक-दो आदि वचनों और प्रथमा-द्वितीया आदि विभक्तियोंसे विभूषित-मुखके विभाजनसे विभूषित ) से विभूषित थी ।।१-५|| [१०] सीताके साथ, दशरथपुत्रों-राम और लक्ष्मणने 5 जय-जयकार किया किराने हा --"कारण भरतको लायीं । हे माँ, मेरा परमतत्त्व सुनो। मैं पिताके सत्यका पालन करूँगा । न मुझे घोड़ोंसे काम है, और न रथवरोंसे । मैं सोलह वर्ष राज्य नहीं करूँगा। पिताने जो सत्य तीन बार दिया है, वह मैं तुम्हें सौ बार देता हूँ।" यह कहकर रामने अपने हाथों सुखसे समृद्ध राज्यपट्ट भरतको चाँध दिया । जिनका मार्ग शत्रुसेनासे अवरुद्ध हैं ऐसे राम वनवासके लिए चल दिये | भरत लौटकर आये और अपने अनुचरोंके साथ सुपूज्य जिनमन्दिर पहुँचे। उन दोनों ( भरत और शत्रुघ्न ) ने धवल मुनिवरके पास यह त ले लिया कि रामके देखते ही हम अश्चों और राज्यसे निवृत्ति ले लेगें ॥१-९॥ [११] यह कहकर महाला भरत चला और रामकी भाताके भवनपर पहुँचा । विनय करके वह निकट गया (और बोला)-“हे माँ ! मैं रामको रोक नहीं सका। मैं तुम्हारी आज्ञाकी इच्छा रखता हूँ। मैं तुम्हारा आज्ञाकारी और चरणोंको देखते रहना चाहता हूँ।" इस प्रकार माताको धीरज बंधाकर राक्षसका दमन करनेवाला राजा भरत अपने भवनके लिए गया । जानकी, लक्ष्मण और हलधर तीनो विहार करते हुए तापसवन पहुंचे। वहाँ उन्हें कितने ही जटाधारी तापस दिखाई
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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