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पउमचरित
जं मणइ मरा 'मुहूँ आउ आउ। वण-वासही राहउ जाउ जाउ' tell
घत्ता सु-पय सु-सन्धि सु-णाम वयण-वित्ति-विहूसिय । कह वायरणहाँ जेम केकय एग्ति पदीसिय ॥९॥
[१ ] सहुँ सीयएं दसरहणम्दणेटिं। जोकारिय राम-जणणेहि ॥१॥॥ पुणु युवा सीर-चपहरणेण | 'कि आणिउ मरहु अकारण ॥२॥ सुणु माएँ महारउ परम-तच्चु । पालेवउ सायहाँ तणा सक्षु ॥३॥
उ सुरहि गाउ रहवर हि कज्नु । णड सोलह वरिसइँ करमि रजु ॥४॥ अं दिण्णु सच्चु साएं ति-बार! संमइ मि दिण्णु तुम्ह सय-धार' ॥५॥ ऍउ क्यणु भणेपिणु सुह-समिछु । सइँ हाथै भरहहाँ पटु बधु ॥६॥ आउछे वि पर-वल-मय-यटूद्ध । घण-वासही राहउ पुणु पयट्टु ॥७॥ गउ माहु णियसु सु-पुजमाणु। जिण-भवण पसु भिधे हि समाणु ||८||
घन्ता विहुँ मुणि-धवल हुँ पासे भर लड्ड अवग्गहु । 'दिट्टएँ राहवचन्दें महु णिबित्ति हय-रजही' ॥९॥
[११] एम चर्षेवि उच्चलिउ महाइउ । राहव-अणणिहें मवणु पराइउ ॥१॥ विणठ करप्पिा पासु पलुकिउ । 'राममा म, धरै वि ण सकि उ ॥२॥ हउँ तुम्हेवहि आणवडिकड। पेसणयारउ अलग-णियाणव' ॥३॥ धीरवि एम जणणि दणु-दमणहाँ। भरहु णराहिउ गउ णिय मवणही। आणइ हरि हलहरू बिहरन्तइँ। तिणि मि तावस-वाणु संपत्सई ॥५॥