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________________ पउमचरित तापस के वि दिव जह-हारिय । कुजण कुमाम जेम जड-दारिय ॥६॥ के वितिदप्ति के वि धाडीसर । कुविय परिन्द जेम पाखीसर ॥७॥ के वि का रुग्स हरया। मे जेम सहधा ॥३॥ वत्ता सहि पइसन्ती सीय लक्षण-राम-विहूसिय । विहिं पाखेहि समाग पुण्णिम प्या पदीसिय ॥९॥ [१२] अण्णु वि थोत्रम्तर विहरन्तई। वणु धाणुक पुणु संपत्तई ॥१॥ हिँ जणवउ मय-मश्थ-णियस्थउ । वरहिण-पिटछ-पसाहिय-हस्थउ ॥२॥ कन्द-मूल-बहु-वणफल-भुञ्जर। सिर-पह-मरल पद गले गुमाउ ॥३॥ जाहिँ जुषहउ छुछु जाय विषाइछ । मयकरि-रय वलयविय-वाहउ ॥४॥ भयकरि-कम्मु करेपिणु उक्खलु । लेवि विसाण-मुसलु अवलुजालु ॥५|| मोतिय-चाउल-एलणोवश्यउ। चुम्बिय-बयणठ मषणभपड ॥६॥ संलेहड वणु मिल्लहुँ केरउ हरि-बलएवं हि किउ विषरेरड ॥७॥ धत्ता तं मैलेंवि वरवाह लोयहिं हरिसिय-देहे हि । छाइय कपषणनाम चन्द्र-सूर जिम मे हि ॥८॥ [३] स-हरि स-मबउ रामु धागुम्छरु। अपणु बि जाम जाइ थोवस्तरु ।। १॥ दिट्ट गोट्ठय पाई सु-चेसई। णं परवड-मन्दिर, सु-चेस ि॥२॥ जुज्झन्सबेकार मुभन्तई। पलिणि-मुणाल-सण्ड तोडमत।३।। कस्थह बच्च-हणई णीसाई। एमइयाई व णिरु गोसाइँ ॥४॥ कस्थइ जणव सिसिरें चचिट। परम-सूह सिरे धरवि पक्षिउ ||५n
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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