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________________ चउबीसमो संधि ५३ किया और कहा, " मी तुम्हे तो बातसे क्या ? तुम आज भी राज्य करो और सुख भोगी। आज भी तुम ताम्बूलका सम्मान करो। आज भी वर उद्यानोंको मानो। आज भी अपनी इच्छानुसार शरीरका अलंकरण करो, आज भी तुम वनिताओंका आलिंगन करो, आज भी तुम समस्त आभरणोंके योग्य हो । आज भी तुम्हारा तपका क्या समय है ? जिनप्रत्रज्या अत्यन्त असहनीय होती है। बाईस परीषहोंको सहन किसने किया? अजेय चार कषायरूपी शत्रुओंको किसने जीता ? किसने पाँच महाव्रतोंका पालन किया? पाँच विषयोंका निग्रह किसने किया ? किसने समस्त परिग्रहोंका त्याग किया ? वर्षाकालके समय वृक्ष के नीचे कौन रहा? शीतकालमें अकेला कौन रहा ? उष्णकालमें आतापन तप किसने तपा? यह तपश्चरण अत्यन्त भीषण होता है। हे भरत, तुम बढ़-चढ़कर बात मत करो; तुम अभी बालक हो। विपयसुखोंका भोग करो। यह प्रव्रज्याका कौन-सा समय है ? विषयसुखोंका भोग करो । यह संन्यासका कौन-सा समय है ?" ॥१-११॥ [५] यह सुनकर भरत क्रुद्ध हो उठा। मत्त हाथीकी तरह अपने मनमें क्षुब्ध हो गया । वह बोला, "हे पिता, आपने अनुचित बात कही । क्या बालकके लिए तपश्चरण उपयुक्त नहीं है, क्या बचपन मुखोंसे मुक्त नहीं होता? क्या बालकको दद्याधर्म अच्छा नहीं लगता? क्या बालकको प्रश्नध्या नहीं होती ? बालकका परलोक दूषित क्यों किया? क्या बालकको सम्यक्त्व नहीं होता, क्या बालकको इष्टवियोग नहीं होता? क्या बालकको जन्म और मृत्य नहीं होते ? क्या बालकको यम एक भी दिन छोड़ता है ?" यह सुनकर उसने भरतको डाँदा कि "पहले तुमने राज्यपट्टकी इच्छा क्यों की? इस समय तुम समस्त राज्य करो ? बादमें तुम तपश्चरण करना।" यह
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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