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परमचरित
आज वि रजु करहि सुहु भुजहि । अज वि विसप-सुक्सु अणुहुअाहि ॥२॥ अज वि तुहुँ तम्बोलु समागहि। आज वि वर-उजाण माणहि ॥३॥ अनु नि अज स-इच्छाएँ मण्डहि । अझ वि वर-विलयउ अबरुण्डहि ॥४॥ आज वि जोग्गल सच्चाहरणहों। अन वि कवणु कालु तव-घरणही ॥५॥ जिण-पवन होइ अइ-दुसहिय । के वाषीस परीसह विसहिय ॥६॥ के जिय बज-कसाय-रिउ दुञ्जय। के आयामिय पञ्च महब्धय ॥७॥ के किउ पञ्चहुँ घिसयहुँ णिग्गहु । के परिसेसिउ सय परिग्गहु ॥८॥ को दुम-मूले वसिड रिसालएँ। को एको घिउ सीयालएँ ॥९॥ के उण्हाल' किंत अत्ताषणु। उ तव-धरणु होइ मीसावणु ॥१०॥
घना भरह म वहिउ-छोल्लि तुई सो अज वि पाल । मुजाहि विसय-सुहाई को पम्बजहँ कालु ॥११॥
तं णिसुणेवि मरहु आष्टुउ। मत्त-गइन्दु प चित्तै बुट्टउ ॥१॥ विरुयउ ताव वणु पर वुत्ता। किं वालहों तब-चरणु ण जुत्तड ॥२॥ किं घालत्तणु सुहे हि ण मुबइ। किं वालहाँ दय-धम्मु ण रुच ॥३॥ किं चाकहाँ पन्चन म होओ। किं वालहों दूलिउ पर-लोओ ॥४॥ कि बालहों सम्मसु म होओ। किं वालहों णव इट-विओओ ||4 सिं वालहाँ जस्मरणु ण दुका। किं वालहौजमु दिवसु वि चुक्कइ॥६॥ तं णिसुणेवि भरहु पिलमरिछन। 'सो किं पहिला पटु परिधिछ ॥७॥ एवहिं सबलु वि रज्जु करेवः । पच्छले पुणु तक-चरणु परेवड' ॥८॥