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________________ 14 ! asaiसमो संधि चौबीसवीं सन्धि रामके वनवासके लिए चले जानेपर अयोध्या चित्तको अच्छी नहीं लगती । चरों, उष्ण कालकी भाँति निश्वास देती हुई स्थित थी । [१] समस्त जन उत्पीड़ित होता हुआ नाम लेते हुए एक ऋण भी नहीं थकता । लक्खण ( लक्ष्मण ) को उछाला जाता, गाया जाता, मृदंग वाद्य में बजाया जाता, श्रुति सिद्धान्त और पुराणोंके द्वारा, तथा ओंकारके द्वारा लक्ष्मणको पढ़ा जाता । और भी जो-जो सलक्खण ( सलक्ष्मण ) है उसे लक्ष्मणके नामसे लक्षण कहा जाता है। कोई नारी हरिणीकी तरह दुःखी हो गयी, और भारी धाड़ छोड़कर रो पड़ी। कोई नारी जो प्रसाधन पहनती हैं वह उसे शान्ति देता है, वह समझती हैं कि वह लक्ष्मण है, कोई नारी जो कंगन पहनती है उसे प्रगाढ़ता से धारण करती हैं, वह समझती है कि वह लक्ष्मण है । कोई नारी जो दर्पण देखती है उसमें वह, लक्ष्मणको छोड़कर कुछ और नहीं देखती । तब इसी बीच पनिहारिमें भी नगर में आपस मैं यही कहती हैं कि बड़ी पलंग, वही तकिया, सेज भी वही है, वहीं प्रच्छादन ( चादर ) है, वहीं घर, वे ही रत्न, और लक्षण सहित बही चित्र कर्म । हे माँ, फेवल लक्ष्मण सहित राम दिखाई नहीं देते ||१-२॥ ४९ [ २ ] इतनेमें राजा के आँगन में पटु, पट और डडि (?) वाद्य इस प्रकार आहत हो उठे जैसे आकाशके प्रांगण में देवदुन्दु भियाँ बजा दी गयी हों। सैकड़ों शंख बजा दिये गये, महा कोलाहल होने लगा । दिविल टनटनाने लगे और श्रेष्ठ मृदंग घूमने लगे । ताल और कंसालका कोलाहल होने लगा, काहल बज उठा, जिनमें उत्तम मंगल गाये जा रहे हैं, ऐसे गीत गाये ४
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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