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परमचरिड
[ २४, पउवीसमो संधि ]
गएँ वण-वासह) रामें उअन ण चिसहाँ भावइ । थिय णीसास मुअन्ति महि लम्हाल' णावह ॥
[ ] सयल वि जणु उम्माहिज्जन्तर । खाणु वि ण थक्करणामु लयन्त ॥१॥ उन्वेल्लिज्जइ गिजइ लावणु। सुम-जन्म २१३. || : सुह-सिद्धमत-पुराणे हि लक्षणु । श्रीशारेण पविजइ लक्षणु ॥३॥ अण्णु विजं जं किं वि स-सम्खणु | लक्खण-णामें घुबा लक्षणु ॥४॥ का नि जारि सारङ्गि व दुष्पणी। वही चाह मुएवि परुण्णी ॥५॥ का वि पारि जलेह पसाहणु। सं उल्हावा जाण लक्षणु ॥६॥ का वि णारि जं परिहइ कशु। धरइ सु गाउउ जाण लक्षणु ॥७॥ का चि गारि जं जोयइ दप्पणु । अपणु पण पंक्षह मेलचि लक्षाशु ॥८॥ तो एरथग्स, पाणिय-हारिन । पुरे बोल्लन्ति परोप्परु णारित ॥५॥ 'सो पल्लनु तं जें उचहापर। सेज वि सज्जे तं जे पच्छाणउ ॥१०॥
घत्ता सं घर स्यण दाइ तं चित्तयम्मु स-लक्खणु । णपर ण दीसइ माएँ राम ससीय-सलक्खणु ॥१५॥
[२] साम पटु पहह डिपहय पशु-पक्षणे । णा. सुर-दुन्दुही दिण्ण गयणगे ॥१॥ रसिय सय सङ्ख जायं महा-गोग्दलं । टिविल-टपटन्त-धुम्मन्त-वरमन्दलं ॥२।। साल-कंसाल-कोलाहलं काहलं। गीय संगीय गिजन्त-दर-माले ॥३॥