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________________ तेयीसमो संधि [१४] जैसे ही उन्होंने गम्भीर नदीको देखा, वैसे ही समूची सेनाको उन्होंने लौटा दिया "कि आप लोग इस समय आज्ञाकी प्रतीक्षा करनेवाले भरतके हृदयसे चाहनेवाले अनुचर होना | अयोध्याको छोड़कर हम लोग दक्षिण देश और बनवासके लिए जायंगे।” यह कहकर सागरावर्त और वसावर्त धनुष हाथमें लिये हुए समरमें समर्थ वे लोग उसके भयंकर जलमें प्रवेश करते हैं, सीता रामके बायें हाथपर चढ़ जाती है मानो कमलोपर शोभा बैठ गयी हो, मानो वह अपनी कीर्ति दिखा रही हो, मानो आकाशको आलोकित करवाती है, मानो रावण के लिए अपनी कन्या दिखाई जा रही हो। शीघ्र ही वे नदीके तटपर ( उस पार ) पहुँच गये, मानो भव्य ही नरकसे उत्तीण हो गये हों। जो सैनिक पीछे लगे थे वे वापस लौट गये, मानो कुबुद्धि, कुमुनि और कुशील व्यक्ति संन्याससे भाग खड़े हुए हो ॥१-९|| [१५] रामका व्यतिक्रम कर राजा इस प्रकार लौट आये, जैसे कुसिद्धोंको सिद्धि प्राप्त न हुई हो। कोई निश्वास छोड़ते हुए लौटे, पल-पलमें, "हा राम, हा राम", यह कहते हुए । कोई महान् दुःखसे भर उठे । कोई केशलोंच करके प्रबजित हो गये। कोई त्रिपुण्ड धारण कर संन्यासी बन गये। कोई व्रतधारण करनेवाले त्रिकालयोगी बन गये | कोई नरवर हवासे प्रकम्पित्त धवल और विशाल हरिषेण-जिनालयमें जाकर संन्यास लेकर स्थित हो गये । शठ, कठोर, वरमेदु, महीधर, विजय, विदग्ध, विनोद, विमर्दन, धीर, सुवीर, सत्य, प्रिय, वर्धन, पुंगम और पुरुषोत्तम, जो विपुल विशाल रणमें उन्मद् और उत्तम थे । यहाँ एक-से-एक प्रधान जिनपरके चरणोंको नमस्कार कर संयम, नियम और गुणोंसे अपनेको विभूषित कर स्थित हो गये ॥१-२।।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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