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पचमचरित
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सरि गम्भीर नियच्छिय जावहिं । 'तुम्हहिँ प्रवाह आणवडिच्छा । उ सुपिणु दाहिणएसहौं । एम मणेपिशु समर - समस्या | पसरति सहिँ सलिलें मयकरें । सिय अरविन्दह उप्पर परवइ । ओड करावर गयहाँ ।
सयलुवि सेण्णु नियसिड तायें हिं ॥ १७ भरदाँ भिद्ध होह दिपइच्छा ॥२॥ अम्हें हिं जाएव वर्ण-वासह ॥३॥ सायर- बज्जावत्त-विहृस्था ||४|| रामहौं चर्दिय सोय वामऍ करें ॥ ५ ॥ गाव नियय किति दरिसाय ॥६॥ पाई पदासह वण दहनचाहीं ॥७॥
खडु
जलवाहिणि- पुलिणु पत्रष्णउँ । णं भविय हूँ पश्यहाँ उतिपणई ॥ ८ ॥
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घत
बलिय पढीचा जोह जे पहु-पछले लग्गा | कु-मुणि कु-बुद्धि कु-सील में पजड़ें मरगा ॥९॥
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नाव सिद्धि कु-सिद्ध ण पत्ता ॥१॥ खखणें 'हा हा राम' मणन्ता ॥२॥ लोड करेचि के चि पञ्चइया ॥३॥ के विविकाल जोइ वय- धारिष ॥४॥ गम्पिणु तहिँ हरिसेण जिणालऍं ॥ ५ ॥ सळ - कठोर वर- मेदु महीहर ॥ ३ ॥ धीर- सुवीर सच्चे - पियवण ॥७॥ विडल विसाल - रणुम्मिय उत्तम ॥८॥
बोलावेव राय नियता । वलिय के विणीसासु मुअन्ता ! केवि महन्ते दुक्खे लइया । के दितिमुण्डधारि वमारिय के वि पवण-धुय-धवल-विसालऍ । श्रिय पर लपविणु णरवर । विजय- वियद्ध-विओय-विमरण | पुनम पुण्डरीय- पुरिसुत्तम ।
धत्ता
इय एक्क्क पहाण जिणवर-चलण मंषि । संजम - शिवम-गुणेहिं अप्पड थिय स हूँ भू
सेंवि
॥९॥