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पउमचरित
उमर-तिरिडिकिया सम्लरी-रउरवं । भम्म-मम्मीस गम्भीर-भेरी-रवं ॥३॥ घण्ट-जयघण्ट-संघट-कारखं । घोल-उल्लोल-हलबोल-मुहलारवं ॥५॥ सेण सदेण रोम-कद्धआ। गोन्दलुशाम-बहु-बदल-अचम्भुआ ॥६॥ सुहन-संघाप सच्चा य थिय पाजे । मेर-सिहरसुणं अमर जिण-जम्मणे ॥७॥ पणइ-फम्फाव-गड-छत्त-का वन्दणं । 'णन्द जय मजय जयहि'चर सणं॥८॥
घता लषरषण-रामहुँ वप्पु णिय-
भिहिँ परियरियउ । जिण-अहिले यहाँ कज्जें णं सुखाइ णीसरियड ॥९॥
[३] जंणीसरिउ राड आणन्दे । वुत्तु गवेप्पिणु भरह-गरिन्दे ॥१॥ 'हर मि देष पई सहुँ पग्वजमि । दुग्गइ-गामिउ रनु ण भुमि ॥२॥ रज्जु असारु वारु संसारहीं। रज सणेण गेइ तम्बारहों ॥३॥ रज्जु भयङ्करु इह-पर-लोयहाँ। रजें गम्मद णिच्च-णिगोयहाँ ॥४॥ रखने होउ होउ मटु सरियड । सुन्दर तो किं पइ परिहरियउ ॥५॥ रज्जु अज्जु कहिउ मुणि-छेयहि । दुट-फलतु व भुसु अणेयहिं ॥६॥ दोसवन्तु मयलन्छण-विम्थु य । यहु-दुक्खाउरु दुग्ग-कुडुम्छु व ॥७॥ तो नि जीउ पुणु रवहाँ कङ्कइ। अणुदिणु भाउ गलम्तु ण लक्खा ॥८॥
पत्ता जिह मछुपिन्दुहें कज्जे करछु ण पेपरखइ कक्करु । सिह जिउ चिसयासन रजें गउ सय-सकर' ॥९॥
[४] 'मज वि तुञ्च का तब-बाएं ॥१॥
भाहु चवन्तु णिचारिउ राएं।