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पउमचरित
गलिय सम्हा पुणु स्थणि पराइन । जगु गिलेइ णे सुत्त महास्य ॥४|| कहि मि दिन दीवय-सय बोहिय । फणि-मणिव पजलन्त सु-सोहिय ॥५॥ तित्थु काले णिरु णिच दुग्गमें। पीसरन्ति रमणिहें चम्दुग्गमें ॥ ६॥ वासुपग-
नात महत्वा: सह सामि ॥७॥ रण-भर-णिवाहण णिम्वाहण। णिग्गय णीसाहण णीसाहण ॥८॥ विगयपओलि पयोले वि खाइय। सिद्धकूड जिण-भषणु पराइस ||१|| जे पायार-धार-विपफुरियउ । पोस्थासित्थ-गन्ध-विस्थरियउ ।।१०।। गङ्ग-तरह हैं ससमुज्जल । हिमहरि-कुम्द-चन्द-जस-जिम्मलु।।११॥
धत्ता
सहाँ भवणहाँ पासेहि विविह महान्दुम दिद्वा। पं संसार भएग जिणवर-सरणे पहा ॥१२॥
[१ ] तं णि वि भुयणु भुषणेसरहीं। पुशु किउ पणिवाउ जिणेसरहाँ ॥१॥ जम गय-भय राय-रोस-विलय । अय मयण-महण तिहुवण-तिलय ॥२॥ जब रखम-दम-तव-वय-णियम करण । जय कलि-मल-कोह-कराय-हरण 1॥३॥ जय काम-कोह-अरि-दष्प-दलण। जय जाइ-जरा-मरणत्ति-हरण ॥३॥ जय जय तम-सूर तिलोय-हिय । जय मण-विचिन्त-अक्षणे सहिय ॥५॥ जय धम्म-महारह-वी दिन । जय सिद्धि-धरमण-रपण-पिय ॥६॥ जय संजम-गिरि-सिहगमिय। जय इन्द-णरिन्द-चन्द-णमिय ॥७॥